शुक्रवार, 2 अगस्त 2024

 भगवान शिव का नटराज स्वरूप

कौन है शिव के पैरों में?

आपने नटराज के रूप में भगवान शिव की प्रतिमा अवश्य देखी होगी। यह स्वरूप सृष्टि के प्रथम नर्तक के रूप में विख्यात है। धर्म ग्रंथों में इस रूप की अनेक व्याख्याएं मिलती हैं। एक व्याख्या के अनुसार, शिव के रौद्र तांडव को रुद्र कहा जाता है जबकि आनंद तांडव को नटराज। रौद्र तांडव से सृष्टि का विनाश होता है जबकि आनंद तांडव से सृष्टि का निर्माण। इस प्रकार, भगवान शिव का नटराज रूप सृजन और विनाश दोनों का प्रतीक है, लेकिन इसके पीछे गहरा आध्यात्मिक संदेश भी छिपा है। आइए, जानते हैं नटराज स्वरूप का आध्यात्मिक महत्व और उनके पैरों के नीचे कौन है...


नटराज स्वरूप का आध्यात्मिक महत्व

नटराज के स्वरूप में भगवान शिव की चार भुजाएं हैं, जो एक अग्नि चक्र से घिरी हुई हैं। दाहिने हाथ में डमरू धारण कर वे ध्वनि सृजन का संकेत देते हैं, जबकि बाएं हाथ में अग्नि विनाश का प्रतीक है। उनके एक हाथ की अभय मुद्रा हमें बुराई से मुक्ति का संदेश देती है। नृत्य की इस मुद्रा में शिव का एक पैर उठता है, जो सार्वभौमिक स्वतंत्रता का प्रतीक है। उनकी इस मुद्रा में छिपी लय जीवन की गतिशीलता और परिवर्तन का प्रतीक है। नटराज के चारों ओर की अग्नि ब्रह्मांड का प्रतीक है और उनके शरीर पर लिपटा सांप कुंडलिनी शक्ति का प्रतीक।

नटराज के पैरों के नीचे दबा दानव और उसका महत्व

नटराज अपने दाहिने पैर के नीचे एक बौने राक्षस को दबाए हुए हैं, जिसे "अपस्मार" कहा जाता है। यह दानव अज्ञानता का प्रतीक है। एक कथा के अनुसार, अपस्मार एक बौना राक्षस था, जो स्वयं को सर्वशक्तिशाली मानता था और दूसरों को हीन समझता था। उसे वरदान प्राप्त था कि वह अपनी शक्तियों से किसी की भी चेतना का हरण कर सकता था। अपनी शक्तियों के बल पर वह सभी को कष्ट पहुँचाता था और अमरता के कारण उसे अभिमान हो गया था कि उसे कोई परास्त नहीं कर सकता।

एक बार कई ऋषि अपनी पत्नियों के साथ हवन और साधना कर रहे थे। उन्हें अपनी सिद्धियों पर घमंड हो गया था। तभी भगवान शंकर और माता पार्वती भिक्षुक के वेश में वहां आए। उन्हें देख ऋषियों की पत्नियाँ यज्ञ छोड़कर उन्हें प्रणाम करने उठ गईं। इससे ऋषियों को क्रोध आ गया और उन्होंने विषधर सर्प उत्पन्न कर महादेव पर आक्रमण कराया। भगवान शंकर ने सभी सर्पों को नष्ट कर दिया। फिर ऋषियों ने अपस्मार को महादेव पर आक्रमण करने भेजा और अपनी सारी शक्तियाँ उसे दे दीं। अपस्मार ने माता पार्वती को भ्रमित कर उनकी चेतना लुप्त कर दी। यह देखकर भगवान शिव ने 14 बार अपने डमरू का नाद किया। इस नाद को अपस्मार सहन नहीं कर सका और भूमि पर गिर पड़ा। तब भगवान शिव ने नटराज का रूप धारण कर अपस्मार को अपने पैरों के नीचे दबाकर नृत्य किया। अपस्मार का वध नहीं किया गया, क्योंकि अज्ञानता को समाप्त करने के लिए उसे दबाए रखना आवश्यक था। इस प्रकार, नटराज शिव के पैरों के नीचे दबा अपस्मार अज्ञानता का प्रतीक है।


भगवान शिव के नटराज स्वरूप में छिपा यह आध्यात्मिक संदेश हमें सृजन और विनाश, स्वतंत्रता और गतिशीलता, और अज्ञानता से मुक्ति का मार्ग दिखाता है।

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