रविवार, 4 अगस्त 2024

 गरीबी से उभरकर खड़ा किया 35 हजार करोड़ का बैंक
हलवाई के बेटे की सफलता की कहानी

सफलता का रास्ता कभी भी आसान नहीं होता। यह अपने आप में कई संघर्षों और कठिनाइयों का एक मिश्रण होता है, जो किसी को उसकी मंजिल तक पहुंचाने में मदद करता है। ऐसी ही प्रेरणादायक कहानी है चंद्रशेखर घोष की, जिन्होंने बंधन बैंक की स्थापना की और अपने जीवन के संघर्षों को एक प्रेरणा में बदल दिया।

हर महान सफलता की कहानी के पीछे एक संघर्ष की गाथा छुपी होती है। जीवन में चुनौतियों का सामना करने और उन्हें अपने पक्ष में मोड़ने का हौसला ही एक साधारण व्यक्ति को असाधारण बना देता है। ऐसी ही एक प्रेरणादायक कहानी है चंद्रशेखर घोष की, जिन्होंने अपनी कड़ी मेहनत, अटूट संकल्प और अपार धैर्य से बंधन बैंक की स्थापना की और उसे एक विशाल वित्तीय संस्थान में बदल दिया।


चंद्रशेखर घोष की कहानी हमें सिखाती है कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी प्रतिकूल क्यों न हों, अगर आप में आत्मविश्वास और संघर्ष करने की क्षमता है, तो आप किसी भी मुकाम को हासिल कर सकते हैं। यह कहानी उन सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है, जो अपने सपनों को साकार करने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं। चंद्रशेखर घोष की यात्रा हमें यह भी बताती है कि गरीबी और कठिनाइयाँ सफलता के मार्ग में बाधा नहीं बन सकतीं, बशर्ते हम अपने सपनों को पूरा करने के लिए दृढ़ संकल्पित हों।

आइए, जानते हैं इस प्रेरक यात्रा की कहानी, जिसने एक हलवाई के बेटे को बंधन बैंक के संस्थापक और 35 हजार करोड़ की संपत्ति के मालिक के रूप में स्थापित किया।

संघर्ष और संकल्प: चंद्रशेखर घोष की शुरुआती यात्रा

चंद्रशेखर घोष का जन्म 1960 में अगरतला (त्रिपुरा) के एक गरीब परिवार में हुआ था। उनके पिता की एक छोटी सी मिठाई की दुकान थी, जिससे घर का खर्च मुश्किल से चलता था। गरीबी में भी चंद्रशेखर ने अपनी पढ़ाई जारी रखी। स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे 1978 में ढाका (बांग्लादेश) चले गए, जहां उन्होंने सांख्यिकी (Statistics) में ग्रेजुएशन की डिग्री ली। अपने खर्चों को पूरा करने के लिए उन्होंने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया।

सफलता की ओर पहला कदम

ढाका में रहते हुए, 1985 में चंद्रशेखर को अंतर्राष्ट्रीय विकास गैर-लाभकारी संगठन BRAC में नौकरी मिली। यहां उन्होंने ग्रामीण महिलाओं को छोटी-छोटी वित्तीय सहायता का परिवर्तनकारी प्रभाव देखा, जिससे वे बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने इस मॉडल को भारत में लागू करने का सपना देखा और 1997 में कोलकाता लौट आए।

बंधन की स्थापना: एक सपने की शुरुआत

कोलकाता में उन्होंने एक वेलफेयर सोसाइटी के लिए काम करना शुरू किया, लेकिन जल्द ही अपनी खुद की कंपनी स्थापित करने का निर्णय लिया। 2001 में, चंद्रशेखर ने 'बंधन' की स्थापना की। इसके लिए उन्होंने दोस्तों और रिश्तेदारों से 2 लाख रुपये उधार लिए। यह कंपनी महिलाओं को माइक्रोफाइनेंस लोन प्रदान करती थी। 2009 में बंधन को भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा एक गैर-बैंकिंग वित्त कंपनी (NBFC) के रूप में पंजीकृत किया गया और 2015 में इसे बैंकिंग लाइसेंस मिल गया, जिससे यह 'बंधन बैंक' बन गया।

बंधन बैंक: एक महान सफलता

बंधन बैंक की आज देशभर के 35 राज्यों में लगभग 6300 ब्रांच हैं और 3.44 करोड़ से ज्यादा ग्राहक हैं। 30 जून 2024 तक, बैंक का डिपॉजिट बेस करीब 1.33 लाख करोड़ रुपये है। चालू वित्त वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही में बैंक का नेट प्रॉफिट 47 फीसदी बढ़ गया है।

चंद्रशेखर घोष की यह कहानी हमें यह सिखाती है कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों, अगर आप में मेहनत, संकल्प और दृढ़ता है, तो आप किसी भी लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं। उनके संघर्ष और सफलता की कहानी वास्तव में प्रेरणादायक है और हम सभी को अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरित करती है।

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