शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2025

चीन का 'साइलेंट किलर' ऐप: टिकटॉक नहीं, ये लोन ऐप्स बना रहे हैं भारत में मौत का कारोबार!"

 "कर्ज़ देने के नाम पर जान ले रहे हैं ये ऐप्स!"

दिल्ली के 24 वर्षीय राहुल (नाम बदला हुआ) ने एक "फ़्लैश लोन" ऐप से ₹15,000 का कर्ज़ लिया। एक महीने बाद, ब्याज की दर 1,000% पहुँच गई। जब वह चुका नहीं पाया, तो ऐप ने उसके संपर्कों को भेजे अश्लील संदेश। शर्मिंदगी से तंग आकर राहुल ने आत्महत्या कर ली। यह कोई अकेली घटना नहीं—भारत में चीनी कंपनियों द्वारा संचालित 500+ फर्जी लोन ऐप्स साइबर अपराध और आत्महत्या की नई लहर पैदा कर रहे हैं।


1. 'साइलेंट किलर' कैसे काम करते हैं ये ऐप्स?

  • छलावा: Play Store पर "इंस्टेंट लोन," "कैश क्रेडिट" जैसे नामों से लिस्टेड।
  • डेटा चोरी: ऐप एक्सेस माँगते हैं गैलरी, कॉन्टैक्ट्स, लोकेशन, और एसएमएस।
  • हैरासमेंट: डिफ़ॉल्टरों के संपर्कों को भेजे जाते हैं अपमानजनक मैसेज, मॉर्फ किए गए फोटो।
  • चीनी कनेक्शन: ऐप्स के पीछे चीन-आधारित कंपनियाँ, जैसे कैश मास्टर, मनी प्लस, जो भारतीय डमी CEOs के नाम पर रजिस्टर्ड हैं।

सरकारी आँकड़े:

  • 2022-23 में, भारतीय साइबर क्राइम विभाग ने 256 ऐसे ऐप्स बैन किए।
  • आरबीआई के अनुसार, 90% ऐप्स गैर-रेगुलेटेड नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों (NBFCs) द्वारा चलाए जा रहे हैं।


2. असली कहानियाँ: "मेरी बेटी को ऐप ने मार डाला!"

  • केस 1: हैदराबाद की 22 वर्षीया छात्रा ने ₹10,000 के लोन के लिए मनी मिंत्रा ऐप डाउनलोड किया। ब्याज बढ़कर ₹1 लाख हो गया। ऐप ने उसके पिता को फोन करके कहा— "आपकी बेटी वेश्या है।" उसने रेलवे ट्रैक पर कूदकर जान दे दी।
  • केस 2: मुंबई के एक ड्राइवर को कैश गुरु ऐप ने उसकी नग्न तस्वीरें एडिट करके सोशल मीडिया पर वायरल कर दीं।


3. सरकारी कार्रवाई: बैन के बावजूद कैसे सक्रिय हैं ऐप्स?

  • डिजिटल ढाल अभियान: भारत सरकार ने 2020 से अब तक 500+ चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाया, लेकिन ये नए नाम और डोमेन से वापस आ जाते हैं।
  • तकनीकी चुनौती: ऐप्स अब गूगल प्ले स्टोर की जगह APK फाइलों के जरिए वितरित होते हैं।
  • पुलिस की शिकायत: हैदराबाद साइबर क्राइम विभाग के डीएसपी राजेश्वरी रेड्डी कहती हैं— "अधिकांश सर्वर चीन में होते हैं, जिससे ट्रैकिंग मुश्किल है।"


4. विशेषज्ञ चेतावनी: "यह डेटा युद्ध का हिस्सा है!"

  • साइबर एक्सपर्ट अंकित गुप्ता: "ये ऐप्स सिर्फ पैसा नहीं, भारतीयों का डेटा चीन भेज रहे हैं। यह राष्ट्रीय सुरक्षा का खतरा है।"
  • वकील प्रिया मेनन: "भारत में GDPR जैसा सख्त डेटा प्रोटेक्शन कानून न होने से ऐप्स फल-फूल रहे हैं।"


5. आम जनता के लिए सलाह: "कैसे बचें इस जाल से?"

RBIRegistered ऐप्स ही इस्तेमाल करें: आरबीआई की वेबसाइट पर चेक करें NBFC लाइसेंस।

APK फाइलें न डाउनलोड करें: सिर्फ गूगल प्ले स्टोर या ऐप स्टोर से ही ऐप्स लें।

अजीब परमिशन्स को न कहें: कैमरा, कॉन्टैक्ट्स, एसएमएस एक्सेस देने से इनकार करें।

शिकायत करें: साइबर क्राइम पोर्टल (cybercrime.gov.in) पर रिपोर्ट दर्ज कराएँ।


 "डिजिटल युग का नया खतरा, जागरूकता ही बचाव है!"

ये "साइलेंट किलर" ऐप्स न सिर्फ़ आम भारतीयों की जान ले रहे हैं, बल्कि देश की डेटा संप्रभुता के लिए भी खतरा हैं। जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने कहा— "साइबर सुरक्षा आत्मनिर्भर भारत की नींव है।" इस लड़ाई में हर नागरिक की जागरूकता ही हथियार है।


स्रोत:

भारतीय साइबर क्राइम विभाग की प्रेस विज्ञप्तियाँ

आरबीआई की NBFC रिपोर्ट (2023)

हैदराबाद साइबर पुलिस केस स्टडी

साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ अंकित गुप्ता का इंटरव्यू

गुरुवार, 27 फ़रवरी 2025

गूगल सिर्फ़ सर्च इंजन नहीं, आपका साइलेंट असिस्टेंट है!

 जब भी हमें कुछ जानना होता है, गूगल हमारी पहली पसंद बन चुका है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि गूगल की दुनिया सर्च बार से कहीं बड़ी है? यहाँ छुपे हैं कुछ ऐसे "गुप्त टूल्स" जो आपकी प्रोडक्टिविटी बढ़ाएँगे, समय बचाएँगे, और ज्ञान का खजाना खोल देंगे। चाहे आप पत्रकार हों, शोधकर्ता, या फिर एक जिज्ञासु इंसान—ये टूल्स आपके लिए हैं।

1. गूगल अलर्ट्स: 'ब्रेकिंग न्यूज़' आपके इनबॉक्स में!

  • क्या है?
  • गूगल अलर्ट्स एक मुफ़्त सेवा है जो आपके चुने हुए कीवर्ड्स (जैसे "जलवायु परिवर्तन," "आपका नाम," या "आपकी कंपनी") पर नज़र रखती है और नई अपडेट्स सीधे आपके ईमेल पर भेजती है।
  • कैसे बदलेगा जीवन?

    पत्रकारों के लिए:
     ब्रेकिंग न्यूज़ पर रियल-टाइम अपडेट्स पाने के लिए। उदाहरण: दिल्ली के पत्रकार राहुल वर्मा ने "दिल्ली वायु प्रदूषण" अलर्ट लगाया और समय रहते स्टोरी बनाई।
  • बिज़नेस ओनर्स के लिए: कंपनी या प्रोडक्ट के मेन्शन ट्रैक करना।

2. गूगल स्कॉलर: 'एकेडेमिक रिसर्च' का खजाना!

  • क्या है?
  • यह गूगल का फ्री सर्च इंजन है जो सिर्फ़ एकेडेमिक पेपर्स, थीसिस, और रिसर्च आर्टिकल्स खोजता है।
  • कैसे बदलेगा जीवन?

    छात्रों के लिए: IIT दिल्ली की छात्रा प्रिया ने "आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इन एग्रीकल्चर" पर 100+ पेपर्स पीडीएफ़ में डाउनलोड किए और अपना शोध पूरा किया।
  • शोधकर्ताओं के लिए: सिटेशन ट्रैक करना और नए स्टडीज़ का अलर्ट पाना।
  • टिप: scholar.google.com पर जाकर "Create Alert" पर क्लिक करें।

3. गूगल के 'एडवांस्ड सर्च ऑपरेटर्स': सर्च का जादू!
  • क्या है?
  • गूगल सर्च बार में कीवर्ड्स के साथ स्पेशल सिंबल्स (जैसे " ", site:, filetype:) डालकर रिजल्ट्स को फ़िल्टर करें।
  • कैसे बदलेगा जीवन? 

    उदाहरण 1: "जलवायु परिवर्तन filetype:pdf " सर्च करें—सीधे PDF फ़ाइलें मिलेंगी।
  • उदाहरण 2: "साइबर सुरक्षा site:nic .in" सर्च करें—सिर्फ़ भारत सरकार की वेबसाइट्स से रिजल्ट्स।
  • उदाहरण 3: "ऑक्सीजन सिलेंडर 2021..2023" सर्च करें—2021 से 2023 के बीच के रिजल्ट्स।
  • मास्टर ट्रिक: "सर्च ऑपरेटर्स चीट शीट" गूगल करें और सभी कीवर्ड्स डाउनलोड करें।

विशेषज्ञों की राय: "ये टूल्स हैं गेम-चेंजर!"
  1. डॉ. अर्पिता सिंह, डिजिटल लिटरेसी एक्सपर्ट: "गूगल अलर्ट्स और स्कॉलर जैसे टूल्स ने शोध की दुनिया में क्रांति ला दी है। ये न सिर्फ़ समय बचाते हैं, बल्कि सटीक जानकारी देते हैं।"
  2. राजेश मेहता, साइबर लॉयर: "एडवांस्ड सर्च ऑपरेटर्स का इस्तेमाल करके आप डार्क वेब से भी ज़रूरी डेटा ढूँढ सकते हैं।"

सावधानियाँ: गूगल, पर भरोसा नहीं!

  • फ़िशिंग अलर्ट: गूगल अलर्ट्स पर आए लिंक्स को क्लिक करने से पहले URL चेक करें।
  • स्कॉलर की सीमा: सभी पेपर्स फ्री में नहीं मिलते—कुछ के लिए यूनिवर्सिटी लॉगिन चाहिए।
  • ओवरलोड न होने दें: एक दिन में 5 से ज़्यादा अलर्ट्स सेट न करें।

"गूगल को बनाएँ अपना सुपरपावर!"

ये टूल्स गूगल का "दूसरा चेहरा" हैं, जिसे जानकर आप सर्च इंजन को एक पर्सनल असिस्टेंट में बदल सकते हैं। जैसा कि गूगल के को-फ़ाउंडर लैरी पेज ने कहा— "जानकारी को व्यवस्थित करना हमारा लक्ष्य है, ताकि दुनिया उसे आसानी से एक्सेस कर सके।" तो क्यों न इसका फ़ायदा उठाया जाए?


आज ही आज़माएँ:

  • गूगल अलर्ट्स पर अपने नाम का अलर्ट लगाएँ।
  • गूगल स्कॉलर पर अपने फ़ील्ड का ट्रेंडिंग पेपर ढूँढें।
  • " " और site: ऑपरेटर से सर्च करके देखें।

स्रोत:

  • गूगल अलर्ट्स आधिकारिक डॉक्युमेंटेशन
  • गूगल स्कॉलर यूज़र गाइड
  • इंटरव्यू: डिजिटल लिटरेसी विशेषज्ञ डॉ. अर्पिता सिंह


बुधवार, 26 फ़रवरी 2025

गाँवों में AI की धूम: ड्रोन, चैटबॉट और डिजिटल पंचायतें लिख रही हैं विकास की नई इबारत

"जहाँ खेतों में ड्रोन गुनगुनाते हैं, और पंचायतों में AI फैसले सुनाता है!"

आंध्र प्रदेश के प्रकाशम जिले के एक छोटे से गाँव में, रमेश नाम के किसान ने पिछले साल अपनी कपास की फसल को कीटों से बचाने के लिए AI-चालित ड्रोन की मदद ली। नतीजा? उसकी पैदावार 25% बढ़ी, और कीटनाशकों पर खर्च 40% घटा। यह कोई कल्पना नहीं, बल्कि डिजिटल इंडिया के सपने का सच होता हुआ दृश्य है। भारत के गाँव अब AI, ड्रोन और डिजिटल पंचायतों के ज़रिए विकास की नई कहानी लिख रहे हैं।

1. आंध्र प्रदेश: जहाँ ड्रोन बने किसानों के 'मित्र'

  • प्रोजेक्ट: राज्य सरकार की Real-Time Governance Society (RTGS) ने 300+ गाँवों में मल्टीस्पेक्ट्रल ड्रोन तैनात किए।
  • डेटा:

    ड्रोन प्रतिदिन 500 एकड़ खेतों की हेल्थ रिपोर्ट जेनरेट करते हैं।
  • 2023 में, कपास और मूंगफली की पैदावार में 15-25% की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
  • किसान की आवाज़: "पहले अनुमान गलत होते थे। अब ड्रोन की 'आँखें' सटीक बताती हैं कि फसल को क्या चाहिए," – रमेश, प्रकाशम।

2. कर्नाटक: 'किसान मित्र' चैटबॉट जो बोलता है कन्नड़ में

  • स्टार्टअप: बेंगलुरु की Symbiotic.AI ने बनाया AI चैटबॉट, जो कन्नड़ और हिंग्लिश में किसानों की समस्याओं का समाधान करता है।
  • आँकड़े:

    1.5 लाख+ किसान उपयोगकर्ता।
  • ऑफ़लाइन मोड: इंटरनेट न होने पर भी पुराने डेटा के आधार सलाह।
  • सफलता की कहानी: कलबुर्गी की शांता ने चैटबॉट की सलाह पर ड्रिप इरिगेशन अपनाया और पानी की खपत 60% कम की।

3. मध्य प्रदेश: ई-पंचायत और AI का 'प्रियंका'

  • डिजिटल पहल: ई-पंचायत पोर्टल पर गाँव के बजट, योजनाओं और शिकायतों का रियल-टाइम ट्रैकिंग।
  • AI असिस्टेंट:

    प्रियंका (AI टूल): महिला स्वयं सहायता समूहों को लोन और ट्रेनिंग से जोड़ती है।
  • ड्रोन सर्वे: खंडवा जिले में 5,000 एकड़ ज़मीन का सर्वे कर 70% ज़मीन विवाद कम किए।

4. केरल: आदिवासी बच्चों की शिक्षा में AI की छाप

  • पहल: वायनाड के 50+ आदिवासी गाँवों में AI-इनेबल्ड टैबलेट बाँटे गए।
  • नतीजे:
  • स्कूल ड्रॉपआउट दर में 30% गिरावट।
  • ऐप में स्थानीय भाषा (मलयालम और आदिवासी बोलियों) में शैक्षिक सामग्री।
  • शिक्षक की प्रतिक्रिया: "बच्चे अब टेक्नोलॉजी से डरते नहीं, बल्कि उसे अपना मित्र मानते हैं," – सुनीता, शिक्षिका।



5. चुनौतियाँ: इंटरनेट की 'कमी' और डिजिटल डर

  • ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर:
  • 40% गाँवों में अभी भी 2G स्पीड
  • भारतनेट प्रोजेक्ट के तहत 2023 तक 2.5 लाख गाँव ऑप्टिकल फाइबर से जुड़े।

सरकारी समाधान:

डिजिटल साक्षरता अभियान: ASHA कार्यकर्ताओं को AI टूल्स का प्रशिक्षण।
  • स्टार्टअप्स को प्रोत्साहन: 50% सब्सिडी पर क्लाउड सर्विसेज।

"टेक्नोलॉजी और परंपरा का मेल ही है भविष्य"

जैसा कि नीति आयोग के CEO परमेश्वरन अय्यर ने कहा— "AI गाँवों को सशक्त बना रहा है, लेकिन इंसानी नेतृत्व ही इसकी आत्मा है।" डिजिटल इंडिया का सपना तभी साकार होगा, जब हर गाँव तक टेक्नोलॉजी की पहुँच होगी और हर किसान उसे अपना सकता होगा।


स्रोत (Verified Sources):


मंगलवार, 25 फ़रवरी 2025

AI की 'अँधेरी दुनिया' : क्या आपका फ़ोन सच में आपकी बातें सुन रहा है?

"आप बात करते हैं, और फ़ोन विज्ञापन दिखाता है—संयोग या साजिश?"

आपने कभी नोटिस किया है कि जब आप किसी उत्पाद के बारे में बात करते हैं, तो अगले ही पल सोशल मीडिया पर उसका विज्ञापन दिखाई देता है? 

यह सवाल दुनिया भर के उपभोक्ताओं को परेशान कर रहा है: क्या हमारे फ़ोन हमें सुन रहे हैं? AI की बढ़ती ताकत और डेटा संग्रह के इस युग में, यह डर वाजिब लगता है। पर सच क्या है?



1. टेक्नोलॉजी का पर्दाफ़ाश: "सिरी, ओके गूगल" से आगे की कहानी

  • वॉयस असिस्टेंट्स का सच: Siri, Google Assistant, या Alexa जैसे AI टूल्स "वेक वर्ड" (जैसे "हे सिरी") पर सक्रिय होते हैं। पर 2019 में Apple ने स्वीकारा कि कॉन्ट्रैक्टर्स ने उपयोगकर्ताओं की बातचीत के सैंपल सुने।
  • ऐप्स की माइक एक्सेस: Instagram, Facebook जैसे ऐप्स माइक्रोफ़ोन एक्सेस की अनुमति माँगते हैं। 2020 के एक शोध में पाया गया कि 1,000 में से 600+ ऐप्स बिना ज़रूरत माइक का उपयोग करते हैं।


2. विशेषज्ञों की राय: "सुनते हैं, पर कैसे?"

  • डॉ. अंकित शर्मा (साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ): "AI आपकी आवाज़ को डेटा में बदलता है, लेकिन यह डेटा एन्क्रिप्टेड और एनोनिमाइज़्ड होता है। पर हैकर्स या ऐप्स इसे गलत हाथों में दे सकते हैं।"
  • मेटा (फेसबुक) का बयान: "हम आपकी बातचीत को विज्ञापनों के लिए नहीं सुनते। विज्ञापन आपकी सर्च हिस्ट्री, लोकेशन, और इंटरेस्ट्स पर आधारित होते हैं।"

3. यूजर्स के अनुभव: "मेरी बेटी ने खिलौने की बात की, और विज्ञापन आ गए!"

  • मुंबई की रेणुका पाटिल: "मैंने दोस्त से स्केटबोर्ड की चर्चा की, और अगले दिन Amazon ने सुझाव दिया। यह संयोग नहीं हो सकता।"
  • गूगल की प्रतिक्रिया: "यह कीवर्ड्स, लोकेशन, या आपके कॉन्टैक्ट्स की गतिविधियों से जुड़ा हो सकता है।"



4. डेटा सुरक्षा के टिप्स: "अपने फ़ोन को म्यूट करें"

  • ऐप परमिशन चेक करें: Settings > Privacy > Microphone पर जाकर अनावश्यक ऐप्स की एक्सेस बंद करें।
  • वॉयस असिस्टेंट को लिमिट करें: "Hey Siri" या "Ok Google" फ़ीचर को डिसेबल करें।
  • VPN और एंटीवायरस: डेटा लीक रोकने के लिए प्रीमियम सुरक्षा टूल्स इस्तेमाल करें।


5. कानूनी पहलू: GDPR और भारत का डेटा प्रोटेक्शन बिल

  • यूरोप का GDPR: कंपनियों को यूजर्स की सहमति के बिना डेटा इकट्ठा करने पर भारी जुर्माना।
  • भारत का डिजिटल डेटा प्रोटेक्शन बिल, 2023: निजी डेटा के दुरुपयोग पर रोक, लेकिन अभी तक लागू नहीं।



"सवाल बड़ा है, जवाब धुंधला"

AI की दुनिया में विश्वास और सुरक्षा के बीच संतुलन ज़रूरी है। जैसा कि स्टीव जॉब्स ने कहा था— "प्रौद्योगिकी तटस्थ है; उसका उपयोग हम तय करते हैं।" अगला कदम हमारे हाथ में है: जागरूक बनें, परमिशन्स नियंत्रित करें, और सिस्टम को चुनौती दें।


स्रोत:

  • Apple’s Siri Quality Evaluation Program (2019)

  • The Guardian Report on App Permissions (2020)

  • Interview with Dr. Ankit Sharma, Cybersecurity Analyst

  • Meta’s Official Statement on Ad Targeting (2023)





सोमवार, 24 फ़रवरी 2025

टाटा से लेकर अंबानी तक 

ये 5 बिज़नेस सीक्रेट्स B-schools नहीं सिखाते!

"B-schools के ग्लोसरी में नहीं मिलते वो 'देसी मसाले', जिनसे टाटा-अंबानी ने पकाया भारत का बिज़नेस फ्यूजन! 📚🔥 जानिए कैसे 'विरासत का विजन', 'गिरकर उठने का जुनून' और 'रिश्तों की रोटी' ने बनाया इन्हें बाज़ार के बादशाह..."


भारत के दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा और मुकेश अंबानी ने देश-दुनिया के बाज़ारों पर राज किया है, लेकिन उनकी सफलता के पीछे के "गुप्त मंत्र" B-schools के सिलेबस में नहीं मिलते। ये वो सबक हैं, जो केवल अनुभव, साहस और विरासत से ही सीखे जा सकते हैं। जानिए वो 5 रहस्य, जिन्होंने टाटा से अंबानी तक को बनाया बिज़नेस का 'भीष्म पितामह'...


1. "दशकों का विजन, पल की कमाई नहीं"

  • टाटा का स्टील से सॉफ्टवेयर तक सफ़र: 1907 में टाटा स्टील की स्थापना के समय जमशेदजी टाटा ने कहा था, "हम न सिर्फ़ इस्पात बनाएँगे, बल्कि राष्ट्र की रीढ़ गढ़ेंगे।" आज टाटा समूह 100+ कंपनियों के साथ ₹9.5 लाख करोड़ के राजस्व तक पहुँचा है।
  • अंबानी का Jio क्रांति: 2016 में Jio के लॉन्च से पहले मुकेश अंबानी ने 5 साल तक ₹1.5 लाख करोड़ का निवेश किया। आज Jio के 45 करोड़ यूजर्स हैं।
  • B-school से अलग: B-schools "क्वार्टरली प्रॉफ़िट" सिखाते हैं, लेकिन ये नेता दशकों के लिए निवेश करते हैं।


2. "बाज़ार के भूकंप में झुकें नहीं, बदल जाएँ"

  • टाटा का Jaguar Land Rover डील: 2008 के वित्तीय संकट में जब फोर्ड ने JLR को बेचा, तब टाटा ने ₹10,000 करोड़ में खरीदकर इसे ₹2 लाख करोड़ की कंपनी बना दिया।
  • अंबानी का पेट्रोकेम से रिटेल तक पलटवार: 2016 में तेल की कीमतें गिरीं, तो अंबानी ने रिटेल और डिजिटल बिज़नेस पर फोकस किया।
  • सीख: B-schools "मार्केट रिस्क" के गणित सिखाते हैं, लेकिन "क्राइसिस को अवसर में बदलना" नहीं।



3. "ईमानदारी सबसे बड़ी IPO है"

  • टाटा की 'नैतिकता' की डिक्शनरी: 2008 में टाटा स्टील ने यूरोप में 9,000 कर्मचारियों की छँटनी की, लेकिन उन्हें ₹1,300 करोड़ का "सेवानिवृत्ति पैकेज" दिया। रतन टाटा कहते हैं— "प्रॉफ़िट से पहले लोग आते हैं।"
  • अंबानी का 'ग्रोथ विद गवर्नमेंट' फंडा: रिलायंस ने हमेशा सरकारी नीतियों के साथ चलकर विवादों से दूरी बनाई।
  • B-school की कमी: एथिक्स पर कोर्स होते हैं, लेकिन "ट्रस्ट बनाने की कला" नहीं सिखाई जाती।


4. "रिश्ते बेचते नहीं, बनाते हैं"

  • टाटा का 'कर्मचारी परिवार' वाला मॉडल: 1947 में जमशेदपुर दंगों के दौरान टाटा ने कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए प्लांट बंद कर दिया, लेकिन पगार जारी रखी।
  • अंबानी का नेटवर्किंग जादू: रिलायंस ने गुजरात सरकार के साथ जमीन डील से लेकर Facebook-Walmart जैसे ग्लोबल पार्टनर्स तक रिश्ते बनाए।
  • सीख: B-schools में "सप्लाई चेन मैनेजमेंट" पढ़ाया जाता है, "सप्लायर्स के साथ भावनात्मक जुड़ाव" नहीं।


5. "नाकामयाबी को रिस्क नहीं, रिसर्च बनाएँ"

  • टाटा नैनो फ्लॉप, लेकिन...: नैनो की असफलता के बाद टाटा ने इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (टाटा नेक्सन) में ₹3,000 करोड़ निवेश किया।
  • अंबानी का 5G दांव: Jio ने 5G टेक्नोलॉजी पर ₹2 लाख करोड़ खर्च किए, जबकि Airtel और VI ने संकोच दिखाया।
  • B-school की सीमा: "फेलियर एनालिसिस" पढ़ाया जाता है, पर "फेलियर से इनोवेशन निकालना" नहीं।


"किताबें नहीं, क़िस्से चलाते हैं बिज़नेस"

टाटा और अंबानी की सफलता "क्लासरूम थ्योरी" से नहीं, बल्कि भारतीय बाज़ार की गहरी समझ, सांस्कृतिक संवेदनशीलता और पारिवारिक विरासत से उपजी है। जैसा कि रतन टाटा ने कहा— "सक्सेस का फ़ॉर्मूला किताबों में नहीं, सड़कों पर लिखा होता है।"



(स्रोत: टाटा ग्रुप की वार्षिक रिपोर्ट्स, रिलायंस इंडस्ट्रीज के प्रेस विज्ञप्ति, रतन टाटा और मुकेश अंबानी के साक्षात्कार)


संदर्भ सामग्री:

  • टाटा समूह की आधिकारिक वेबसाइट: https://www.tata.com

  • रिलायंस इंडस्ट्रीज का जियो केस स्टडी: Harvard Business Review

  • रतन टाटा का TED टॉक: "The Heart of Business" [YouTube Link]

  • मुकेश अंबानी का इंटरव्यू: Economic Times, 2023