कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में वृद्धि से
बढ़ सकता है फसलों में कीट प्रकोप
कार्बन डाइऑक्साइड के कारण फसल उत्पादन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, पर इसके साथ ही फसलों के लिए हानिकारक कीटों की आबादी में भी बढ़ोत्तरी हो सकती है।
चावल भारत के साथ-साथ एशिया एवं विश्व के बहुत से देशों का प्रमुख आहार है। विश्व में मक्का के बाद धान ही सबसे अधिक पैदा होने वाला अनाज है। वैज्ञानिकों का मत है कि भविष्य में बढ़ी हुई कार्बन डाइऑक्साइड का प्राकृतिक तौर पर लाभ उठाने के लिए भूरा फुदका जैसे कीटों के नियंत्रण हेतु उचित प्रबंधन की जरूरत पड़ेगी। चूंकि आने वाले समय में भूरा फुदका से धान की फसल को खतरा हो सकता है। कम जीवन काल, उच्च प्रजनन क्षमता और शारीरिक संवेदनशील होने से ये कीट बदलती जलवायु के अनुसार आसानी से स्वयं को रूपांतरित कर सकते हैं। इसलिए निकट भविष्य में कीटों की रोकथाम, उचित प्रबंधन के लिए बेहद सतर्कता बरतनी होगी। सबसे बड़ी बात यह है कि इस दिशा में अभी शोध अध्ययनों की काफी कमी है।
‘‘शोध पत्रिका करंट साइंस’’ में प्रकाशित अध्ययन की माने तो लगातार वातावरण में बढ़ रही कार्बन डाइऑक्साइड से फसल उत्पादन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, पर साथ ही फसलों के लिए हानिकारक कीटों की आबादी में भी बढ़ोत्तरी हो सकती है।
कटक स्थित राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान और नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. गुरु प्रसन्ना पांडी, सुभाष चंदर, मदन पाल और पी.एस. सौम्या (अध्ययनकर्ता टीम) धान की फसल और उसमें लगने वाले भूरा फुदका कीट पर कार्बन डाइऑक्साइड की बढ़ी हुई मात्रा के प्रभावों का अध्ययन करने के बाद इस नतीजे पर पहुंची है।
वैज्ञानिकों का मत है कि वर्ष 2050 में कार्बन डाइऑक्साइड 550 पीपीएम और वर्ष 2100 में 730-1020 पीपीएम तक पहुंच जाएगी, जिसका भविष्य में फसलों और कीटों दोनों के अनुकूलन पर प्रभाव पड़ सकता है। अध्ययन के अंतर्गत कार्बन डाइऑक्साइड की भिन्न-भिन्न दो प्रकार की मात्राओं क्रमशः 390-392 पीपीएम और 578-584 पीपीएम के वातावरण में चावल की पूसा बासमती-1401 किस्म को वर्षा ऋतु में 2.5 मीटर ऊंचे और तीन मीटर चैड़े ऊपर से खुले हुए कमरे में नियंत्रित परिस्थितियों में उगाया गया था। निर्धारित समय पर पौधों को भूरा फुदका कीट अर्थात् ब्राउन प्लांट हापर, जोकि नीलापर्वता लुजेन्स वैज्ञानिक नाम से जाना जाता है, से संक्रमित कराया गया। अनुसंधानकर्ताओं द्वारा फसल उत्पादन सहित कीट के निम्फों (शिशुओं), नर कीटों और पंखयुक्त व पंखहीन मादा कीटों की संख्या सहित उनके जीवनचक्र पर कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़े स्तर के प्रभावों का अध्ययन किया गया।
वैज्ञानिक डॉ. गुरु प्रसन्ना की माने तो “सामान्यरूप से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड वाले वातावरण में उगने वाले पौधों की पत्तियों में कार्बन व नाइट्रोजन का अनुपात बढ़ जाता है, जिससे पौधों में प्रोटीन की सांद्रता कम हो जाती है। धान के पौधों में प्रोटीन की कमी की पूर्ति के लिए कीट अत्यधिक मात्रा में पोषक तत्वों को चूसना शुरू कर देते हैं। कीटों की बढ़ी आबादी और चूसने की दर में वृद्धि के कारण धान की फसल की गुणवत्ता प्रभावित होती है और पैदावार कम हो जाती है। अनुमान लगाया गया है कि धान की फसल के उत्पादन में इस तरह करीब 29.9-34.9 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है।”
अध्ययन में यह भी पाया गया कि बढ़े हुए कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर से धान की उपज पर सकारात्मक परिणाम देखने को मिला, जिससे उत्पादन में 15 फीसदी की वृद्धि हुई, पर साथ ही फसल में लगने वाले भूरा फुदका कीट की आबादी भी दो से तीन गुना बढ़ गई। अनुसंधानकर्ताओं ने देखा कि धान के पौधों में बालियों की संख्या में 17.6 प्रतिशत, पकी बालियों की संख्या में 16.2 फीसदी, बीजों की संख्या में 15.1 प्रतिशत और दानों के भार में 10.8 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई। वहीं कीटों की प्रजनन क्षमता में 29-31.6 बढ़ोत्तरी हुई, जिससे इनकी संख्या में भी 97-150 कीट प्रति पौधे की वृद्धि हुई। जबकि बढ़ी हुई कार्बन डाइऑक्साइड से नर और मादा कीटों की जीवन क्षमता में कमी हुई। यानि भारी संख्या में कीट तो पैदा हुए, परंतु वे अपेक्षाकृत कम समय तक जीवित रह पाए।
संदर्भः इंडिया साइंस वायर
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