अश्वगंधा के औषधीय गुण
जैविक तरीके से बढ़ सकते हैं
भारत के राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड ने अश्वगंधा को घरेलू एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सर्वाधिक मांग वाली चयनित 32 प्राथमिक औषधीय पौधों में से एक माना है। डब्ल्यूएचओ अर्थात् विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा चयनित औषधीय पौधों के मोनोग्राफ में भी अश्वगंधा को उसकी अत्यधिक औषधीय क्षमता के कारण शामिल किया गया है। गठिया, कैंसर तथा सूजन प्रतिरोधी गुणों के अलावा प्रतिरक्षा नियामक, कीमो व हृदय सुरक्षात्मक प्रभाव और तंत्रिकीय विकारों को ठीक करने वाले गुण भी अश्वगंधा में होते हैं। इन चिकित्सीय गुणों हेतु अश्वगंधा में मिलने वाले एल्केलोइड्स, फ्लैवेनॉल ग्लाइकोसाइड्स, ग्लाइकोविथेनोलाइड्स, स्टेरॉल, स्टेरॉयडल लैक्टोन और फिनोलिक्स जैसे रसायनों को उत्तरदायी माना जाता है।
यही कारण है कि तीन हजार से भी अधिक वर्षों से भारतीय, अफ्रीकी एवं यूनानी पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों में प्रयुक्त अश्वगंधा पर भारतीय वैज्ञानिकों (प्रताप कुमार पाती, अमरदीप कौर, बलदेव सिंह, पूजा ओह्री, जिया वांग, रेणु वाधवा, सुनील सी. कौल एवं अरविंदर कौर) ने एक ताजा अध्ययन में पाया गया कि जैविक तरीके से पैदा किए गए अश्वगंधा के पौधे की जीवन दर और उसके औषधीय गुणों में बढ़ोत्तरी हो सकती है। इस अध्ययन को गुरु नानक देव विश्वविद्यालय (अमृतसर) और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ एडवांस्ड इंडस्ट्रियल साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी (जापान) के वनस्पति वैज्ञानिकों द्वारा किया गया, जिसे ‘‘प्लॉस वन’’ नामक रिसर्च पत्रिका में स्थान दिया गया।
अनुसंधान में पाया गया कि साधारण परिस्थितियों में उगे अश्वगंधा की तुलना में वर्मी-कम्पोस्ट से उपचारित अश्वगंधा की पत्तियों में विथेफैरिन-ए, विथेनोलाइड-ए और विथेनोन नामक तीन विथेनोलाइड्स जैव-रसायनों की मात्रा लगभग 50-80 प्रतिशत तक अधिक पाई गई है। इन जैव-रसायनों ने अश्वगंधा के गुणों में वृद्धि की। विथेनिया सोमनीफेरा यानि अश्वगंधा की सरल, सस्ती, पर्यावरण-अनुकूल कृषि और उसके औषधीय गुणों के संवर्धन के लिए गोबर, सब्जी के छिलकों, सूखी पत्तियों और जल को अलग-अलग अनुपातों में मिलाकर बनाए गए वर्मी-कम्पोस्ट एवं उसके द्रवीय उत्पादों वर्मी-कम्पोस्ट-टी तथा वर्मी-कम्पोस्ट-लीचेट का इस्तेमाल किया गया। बुवाई से पूर्व बीजों को वर्मी-कम्पोस्ट-लीचेट और वर्मी-कम्पोस्ट-टी के घोल द्वारा उपचारित करके संरक्षित किया गया और बुवाई के समय वर्मी-कम्पोस्ट की विभिन्न मात्राओं को मिट्टी में मिलाकर इन बीजों को बोया गया। अध्ययन परिणाम के रूप में वैज्ञानिकों ने पाया कि इन उत्पादों के प्रयोग से कम ही समय में अश्वगंधा के बीजों का अंकुरण, पत्तियों की संख्या, आकार, शाखाओं की सघनता, पौधों के जैव-भार, वृद्धि, पुष्पण तथा फलों के पकने में प्रभावी बढ़ोत्तरी दर्ज की गई।
प्रताप कुमार पाती (वरिष्ठ शोधकर्ता) ने की माने तो “अश्वगंधा की जड़ और पत्तियों को स्वास्थ्य के लिए गुणकारी पाया गया है। इसकी पत्तियों से 62 और जड़ों से 48 प्रमुख मेटाबोलाइट्स की पहचान की जा चुकी है। अश्वगंधा की पत्तियों में पाए जाने वाले विथेफैरिन-ए और विथेनोन में कैंसर प्रतिरोधी गुण होते हैं। हर्बल दवाओं की विश्वव्यापी बढ़ती जरूरतों के लिए औषधीय पौधों की पैदावार बढ़ाने के वैज्ञानिक स्तर पर गहन प्रयास किए जा रहे हैं। अश्वगंधा उत्पादन में वृद्धि की हमारी कोशिश इसी कड़ी का हिस्सा है।”
अश्वगंधा के उत्पादन की प्रमुख बाधाओं में उसके बीजों की निम्न जीवन क्षमता और कम प्रतिशत में अंकुरण के साथ-साथ अंकुरित पौधों का कम अवधि तक जीवित रह पाना सम्मिलित है। औषधीय रूप से महत्वपूर्ण मेटाबोलाइट्स की पहचान, उनका जैव संश्लेषण, परिवहन, संचयन और संरचना को समझना भी प्रमुख चुनौतियां हैं। प्रताप कुमार पाती की माने तो वर्मी-कम्पोस्ट के प्रयोग से अश्वगंधा की टिकाऊ तथा उच्च उपज की खेती और इसके औषधीय गुणों में संवर्धन से इन चुनौतियों का सामना किया जा सकता है।
संदर्भः इंडिया साइंस वायर
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