शनिवार, 10 फ़रवरी 2018

शिक्षा के क्षेत्र में हो रहा है सकारात्मक सुधार
नवयुवक बन रहे अब काम के लायक


भारतीय शिक्षा पद्धति पर प्रायः सवाल उठाएं जाते रहे हैं, जिसके निचोड़ की बात करें तो हम पाएंगे कि समय-समय पर शिकायत मिलती रही है कि विश्वविद्यालय से निकले स्नातक काम पर रखने लायक नहीं हैं। इस बारे में श्री रतन टाटा ने भी इंजीनियर्स के लिए कहा था कि उनमें अधिकांश रोजगार के लिए अपेक्षित पात्रता नहीं रखते। इस धारणा के विपरीत हाल ही में प्रतिष्ठित संस्थाओं ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन, कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज और यूनाइटेड नेशंस डिवेलपमेंट प्रोग्राम के साथ-साथ दो स्वतंत्र एजंसियों पीपलस्ट्रांग और वीबॉक्स के संयुक्त सर्वेक्षण से यह बात निकलकर आई है कि गत कुछ वर्षों में भारत के नए स्नातकों में रोजगार योग्यता में ठीक-ठाक ढंग से सुधार आया है।

120 कंपनियों और 510,000 छात्रों पर हुए इस सर्वेक्षण के सकारात्मक नतीजे बताते हैं कि शिक्षा प्रणाली और नवयुवकों के स्किल में पहले की अपेक्षाकृत अच्छा सुधार देखने को मिला है। रोजगार योग्यता अथवा नियोजनीयता मैनेजमेंट अवधारणा को हाल ही में शामिल किया गया है। वर्ष 1997 में सुमंत्र घोषाल ने इसे सर्वप्रथम प्रस्तुत किया, जिसका अर्थ है मूल्य उत्पादक कार्य करके धन कमाना और काम करते हुए अपनी क्षमताओं या निपुणता में वृद्धि करना ताकि भविष्य में अधिक बेहतर संभावनाओं को तलाशा जा सके।

हमारे देश में तकनीकी शिक्षा के अलावा दूसरे क्षेत्रों को इस दायरे से बाहर रखा जाता था। दूसरे अर्थों में कहे तो स्नातक सरकारी नौकरियों के लिए चाहे अच्छे से फिट हो जाते हैं, किंतु उत्पादक कार्यों के लिए वे उपयोगी नहीं होते। हाल में आया सर्वेक्षण इसके उल्ट यह प्रदर्शित करता है कि फिलहाल ऐसे में स्नातकों में कॉरपोरेट नौकरियों के लिए योग्यता पैदा हुई है।

गत वर्ष की अपेक्षा इस साल इसमें काफी वृद्धि देखी गई है जैसेकि इंजीनियरिंग क्षेत्र में रोजगार क्षमता 2016-17 में 50.69 प्रतिशत थी, जोकि 2017-18 में 51.52 प्रतिशत हो गई। फार्मास्युटिकल्स में गत वर्ष 42.3 फीसदी रहने वाली रोजगार क्षमता इस साल 47.78 प्रतिशत हो गई। कंप्यूटर ऐप्लिकेशंस में आश्चर्यजनक तरीके से यह क्षमता 31.36 प्रतिशत से बढ़कर 43.85 फीसदी तक हो गई। बीए में 35.66 फीसदी रहे वाली रोजगार क्षमता इस वर्ष 37.39 प्रतिशत हो गई। वहीं दूसरी ओर 2014 से शुरू उछाल पर रही एमबीए और बीकॉम की रोजगार योग्यता (34 प्रतिशत से 46 प्रतिशत पर पहुंच गई थी) में गिरावट दर्ज की गई। मोटा मोटी देखे तो यह निकलकर आया कि प्रत्येक दो नए स्नातकों में से एक को रोजगार दिया जा सकता है। इंजीनियरों के रोजगार में भी 52 प्रतिशत रोजगार लायक पाएं गए हैं। सर्वाधिक योग्य कंप्यूटर साइंस विद्यार्थी माने गए।

सर्वेक्षणकर्ताओं की माने तो अनेक संस्थानों ने बदलते समय की नब्ज के हिसाब से अपने कोर्सों को बदला है, इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार लाया है और अपने छात्रों को रोजगार दक्ष बनाने के लिए लीक से हटकर प्रयत्न किए हैं। ऐसे में, सरकार के समक्ष एक नई चुनौती आ खड़ी हुई है, चूंकि दक्ष कर्मचारी बेरोजगारी को सरलता से सहन नहीं कर पाएगे।

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