शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018

आज का विचार 

हम चीजो को उस तरह से नही देखते जिस तरह से वे है बल्कि हम चीजो को उस तरह से देखते है जिस तरह के हम है।

गुरुवार, 27 दिसंबर 2018

आज का विचार 

   चुनौतिया ही जिंदगी को रोमांचक बनाती है और इसी से आपके ज़िन्दगी का महत्त्व निर्माण होता है

मंगलवार, 25 दिसंबर 2018

आज का विचार 






यही दुनिया है! यदि तुम किसी का उपकार करो, तो लोग उसे कोई महत्व नहीं देंगे, किन्तु ज्यों ही तुम उस कार्य को वन्द कर दो, वे तुरन्त (ईश्वर न करे) तुम्हे बदमाश प्रमाणित करने में नहीं हिचकिचायेंगे। मेरे जैसे भावुक व्यक्ति अपने सगे दृ स्नेहियों द्वरा सदा ठगे जाते हैं।

रविवार, 23 दिसंबर 2018

आज का विचार 

जब आप कुछ नया करना चाहेगे तो पहले लोग आप पर हँसेगे फिर आपके सफल होने पर लोग आपकी नकल करेगे

शुक्रवार, 21 दिसंबर 2018

आज का विचार 

              मनुष्य को अपने लक्ष्य में कामयाब होने के लिए खुद पर विश्वास होना बहुत ज़रूरी है।

गुरुवार, 20 दिसंबर 2018

आज का विचार 

जो खो गया उसे सोचा नही करते, जो मिल गया उसे खोया नही करते, 
सिर्फ उन्ही को हासिल होती है सफलता, जो वक्त और हालात पे रोया नही करते!

बुधवार, 19 दिसंबर 2018


आज का विचार 


चीजें बदलती हैं और आपके मित्र भी आपको छोड़ के चले जाते हैं परन्तु जीवन किसी के लिए भी नहीं रूकता।

मंगलवार, 18 दिसंबर 2018


आज का विचार 

कभी भी यह मत सोचो की तुम्हारे लिए, तुम्हारी आत्मा के लिए कुछ भी नामुमकिन है। यह सोच ही सबसे ज्यादा दुखदायी है।


सोमवार, 17 दिसंबर 2018

आज का विचार 

चुनौतिया ही जिंदगी को रोमांचक बनाती है और इसी से आपके ज़िन्दगी का महत्त्व निर्माण होता है।

शुक्रवार, 14 दिसंबर 2018

आज का विचार 

जब तक हम किसी भी काम को करने की कोशिश नही करते हैं, 
जब तक हमे वो काम नामुमकिन ही लगता है।

गुरुवार, 13 दिसंबर 2018


आज का विचार 

प्रेम एक ऐसा अनुभव है जो मनुष्य को कभी हारने नही देता, और घृणा एक ऐसा अनुभव है जो इंसान को कभी जीतने नही देता।

बुधवार, 12 दिसंबर 2018


आज का विचार 

सब कुछ आसानी से मिल जाए तो जिन्दगी जीने का क्या मज़ा, उसे जीने के लिए एक कमी भी ज़रूरी है!!

मंगलवार, 11 दिसंबर 2018










आज का विचार 

जैसे काँटों के बीच में फूल खिलते हैं, उसी तरह विश्वास पर चलकर भगवान मिलते हैं।

सोमवार, 10 दिसंबर 2018

आज का विचार 

जब तक हम किसी भी काम को करने की कोशिश नही करते हैं, 

जब तक हमे वो काम नामुमकिन ही लगता है।

रविवार, 9 दिसंबर 2018

आज का विचार 

असफलता, सफलता के लिए एक उर्वरक के समान है, परंतु अधिक उर्वरक का प्रयोग उपज को समाप्त कर देता है।

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2018

आज का विचार 

अपनी आत्मा को खो कर दुनिया को हासिल मत करो क्योंकि बुद्धि, चाँदी और सोने से भी बढ़ कर है।

गुरुवार, 6 दिसंबर 2018


आज का विचार 

भगवान् तो प्रेम के भूखे हैं, भूखे को भोजन खिलाओगे तो भगवान् खुश होगा.

बुधवार, 5 दिसंबर 2018

आज का विचार 

सफलता, असफलता की संभावनाओ के आकलन में समय नष्ट न करे, लक्ष्य निर्धारित करे और कार्य आरम्भ करे

मंगलवार, 4 दिसंबर 2018


आज का विचार 

किसी इंसान के बुरे वक़्त में उसका हाथ पकड़ो, उसे सहारा दो और हिम्मत दो, 
क्यूँकि बुरा वक़्त तो थोड़े समय में चला जायेगा, 
लेकिन वो आपको दुआ ज़िंदगी भर देते रहेगा।

रविवार, 2 दिसंबर 2018

आज का विचार 

जब आदमी के पास पैसा आता है,
तो वह भूल जाता है कि वह कौन है।

लेकिन जब उसके पास से पैसा जाता है,
तो दुनिया भूल जाती है कि वह कौन था।

शनिवार, 1 दिसंबर 2018

देश का अन्नदाता-किसान
बेचारा नहीं, देश का सहारा

कल यानि 30 नवंबर 2018 को देश के अलग-अलग हिस्‍सों से लाखों किसान दिल्‍ली में एकत्र हुए। उन्होंने अपनी विभिन्‍न मांगों को लेकर संसद की ओर कूच किया। किसानों के इस प्रदर्शन को किसान मुक्ति मार्च नाम दिया गया। ये किसान कर्ज माफी, फसलों का बेहतर न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (एमएसपी) समेत अपनी अन्‍य मांगों को पूरा करवाने दिल्‍ली की सड़कों पर जुटें। उन्होंने पीले रंग का पर्चा बांटा, जिसमें किसानों द्वारा अपना दर्द व्यक्त किया गया था। दिल्ली के रामलीला मैदान से सोशल मीडिया तक अपने संदेश को किसानों ने लोगों तक पहुंचाया कि उन्हें उपज का क्या भाव मिलता है और आम जनता क्या दाम देती है। किसानों ने लिखा है, ‘माफ कीजिएगा! हमारे इस मार्च से आपको परेशानी हुई होगी...हम किसान हैं। आपको तंग करना हमारा इरादा नहीं है। हम खुद बहुत परेशान हैं। सरकार को और आपको अपनी बात सुनाने बहुत दूर से आए हैं। हमें आपका बस एक मिनट चाहिए।... हम हर चीज महंगी खरीदते हैं और सस्‍ती बेचते हैं। हमारी जान भी सस्‍ती है। पिछले बीस साल में तीन लाख से अधिक किसान आत्‍महत्‍या कर चुके हैं। हमारी मुसीबत की चाभी सरकार के पास है, लेकिन वो हमारी सुनती नहीं। सरकार की चाभी मीडिया के पास है, लेकिन वो हमें देखता नहीं। और मीडिया की चाभी आपके पास है। आप हमारी बात सुनेंगे, इस उम्‍मीद से हम आपको अपनी दुख-तकलीफ समझाने आए हैं।...हम सिर्फ इतना चाहते हैं कि संसद का एक विशेष सत्र किसानों की समस्‍या पर बुलाया जाए। और उसमें किसानों के लिए दो कानून पास किए जाएं। फसलों के उचित दाम की गारंटी का कानून और किसानों को कर्ज मुक्‍त करने का कानून। कुछ गलत तो नहीं मांग रहे हम?...अगर आपको हमारी बात सही लगी हो तो इस मार्च में दो कदम हमारे साथ चलिए।’ 
कभी आपने सोचा है कि क्यों देश के किसी ना किसी हिस्से में किसानो को आये दिन सड़को पर आंदोलन करने के लिए उतरना पड़ रहा है। क्यों देश में गत कई वर्षां से हर साल हजारों किसान निराश होकर आत्महत्या जैसा कदम उठाने को मजबूर हो गए हैं। क्यों देश में हर घंटे एक से अधिक किसान आत्महत्या कर रहा है।
एक समय ऐसा भी था कि जब हमारे देश में खेती को सबसे उत्तम कार्य माना जाता था। महाकवि घाघ की एक प्रसिद्ध कहावत है ‘‘उत्तम खेती, मध्यम बान। निषिद्ध चाकरी, भीख निदान।’’ यानि खेती सबसे अच्छा काम है। व्यापार मध्यम है, नौकरी निषिद्ध है और भीख मांगना सबसे बुरा कार्य है। अब प्रश्न उठता है कि क्या आज आजीविका के लिए खेती सबसे अच्छा कार्य रह गया है? आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं, तो हम पाएंगे कि देश में प्रतिदिन लगभग 2000 किसान कृषि छोड़ रहे हैं, जबकि आज भी लगभग 58 प्रतिशत जनसंख्या खेती से आजीविका चलाती है। समाज के इतने बड़े तबके की अशांति देश के लिए शुभ संकेत नहीं है। देश में निरंतर हो रहे ये किसान आंदोलन एक गंभीर संकट की ओर इशारा कर रहे हैं। जाट, मराठा, पाटीदार आदि कृषि आधारित मजबूत मानी जाने वाली जातियों के जातिगत आरक्षण आंदोलन की जड़ें भी कुछ-कुछ कृषि क्षेत्र में बढ़ते संकट की ओर संकेत करती दिख रही हैं। विगत कई वर्षों से ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि की बदहाल स्थिति ने भी खतरनाक आक्रोश को जन्म दिया है। यदि समय की नजाकत को समझते हुए इसका समाधान न हुआ, तो पूरा देश एक भयंकर आंदोलन की भेट चढ़ सकता है।
आपने देखा होगा कि छत्तीसगढ़ में किसान टमाटर सड़क पर फेंकने को मजबूर हो रहे हैं। हरियाणा के किसान को 9 पैसे प्रति किलो आलू बेचने पड़ रहे हैं। कर्नाटक व दूसरे राज्यों के किसान सड़कों पर प्याज फेंकने को विवश हैं। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में तो किसान फल सब्जियां और दूध सड़कों पर बहाकर अपना रोष प्रकट कर रहे हैं। आखिर क्या वजह है कि आज देश का कोई भी प्रदेश ऐसा नहीं बचा, जहां से किसान की खुशहाली एवं समृद्धि की खबरें आ रही हों। इसके लिए सबसे पहले हमें कृषि-किसानों की दुर्दशा के लिए उत्तरदायी कारणों को जानना जरूरी है। आखिर क्या वजह है कि आज कृषि बेहाल और किसान चक्रव्यूह में फंसा अभिमन्यु प्रतीत हो रहा है। भिन्न-भिन्न प्रदेशों के कारण हो सकता है कि किसानों की कुछ समस्याएं अलग-अलग हों, परंतु कुछ सामान्य समस्याएं हैं, जोकि सभी किसानों को परेशान कर रही है। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि समस्या चाहे कितनी भी गम्भीर क्यों न हो, उसका समाधान जरूर होता है। जरूरत है अध्ययन, चिन्तन एवं मनन की। चलिए जानते समस्याओं एवं संभव समाधानों कोः- 
1. लागत में वृद्धि एवं उपज का सही मूल्य न मिल पाना अर्थात आमदनी में कमी-
आज खेती में प्रयोग होने वाले सारी चीजों के लिए किसान दूसरों पर निर्भर हो गया है। महंगे बिकने वाले पेस्टिसाइड से कीटों पर नियंत्रण होता है, फसलों की उत्पादकता बढ़ जाती है। पर जैविक या प्राकृतिक खेती की अपेक्षा ये रासायनिक खेती किसान का खर्चा बढ़ाने के साथ मिट्टी की उर्वरक क्षमता, पर्यावरण, विलुप्त होती प्रजाति, किसान और उपभोक्ता के स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत घातक सिद्ध होते हैं। एक बार इनका प्रयोग कर दिया तो भूमि इसकी आदी हो जाती है, फिर इनको बार-बार इस्तेमाल करना पड़ता है। इनकी कीमत पर सरकार का नियंत्रण न होने के चलते, किसान इनको बहुत महंगे दामों पर खरीदने को मजबूर रहता है। 
दूसरी ओर, पूर्व काल में किसान बीज, खाद, दवा, यन्त्र और यहां कि श्रम के मामले में भी आत्मनिर्भर था। वह बीज स्वयं सुरक्षित रखता था, खाद के लिए गोबर खाद, केंचुआ खाद, हरी खाद, नाडेप कम्पोस्ट, सींग की खाद इत्यादि का उपयोग करता था। कीट एवं रोगोपचार के लिए नीम, करन्ज, शरीफा, धतूरा, मदार, लहसुन, हींग, गोमूत्र, मट्ठा इत्यादि का प्रयोग करता था। यन्त्रों में देसी बैल, सिंचाईं हेतु रहट एवं लेबर व्यय कम करने हेतु स्वयं श्रम करता था। 
2. महंगी मजदूरी-
आज खेतों में काम करने वाले मजदूर मिलना बड़ी समस्या बन चुकी है। पहले संयुक्त परिवार थे, जिससे यह समस्या नहीं होती थी। मनरेगा ने मजदूरी दर बढ़ा दी है, जिससे खेती की लागत काफी बढ़ गई है।
3. खेत की छोटी जोतें-
बढ़ती जनसंख्या, घटती भूमि ने खेतों की जोतों के आकार को घटा दिया है। लगभग 85 प्रतिशत किसानों के पास 2 हेक्टेयर से भी कम भूमि है। इससे भी प्रति एकड़ खेती की लागत बढ़ जाती है।
4. किसानों की कमान मार्केट यानि बाजार के हाथों में चली गई है-
आज किसान बीज, खाद, दवा, यन्त्र एवं लेबर के लिए बाजार पर निर्भर हो गया है। हमारी कृषि अब दूसरों के अधीन हो चली है। आज मार्केट में बैठा व्यक्ति मनमाना दाम किसान से वसूल रहा है। कम्पनी जब सामान तैयार करती है, तो वह उसका मूल्य भी तय करती है, किन्तु किसानों के सन्दर्भ मे ऐसा नहीं है। आज किसान लाचार, असहाय और मूकदर्शक हो गये हैं। 
5. सही जानकारी का अभाव-
बाजार उन चीजों के लिए होता है, जिन्हें हम बना नहीं सकते, तो उसे खरीदने मार्केट जाते हैं जैसेकि मोबाइल, टी.वी., बल्ब, मशीन आदि। चिन्तनीय यह है कि कृषि में काम आने वाली कोई भी चीज ऐसी नहीं है, जिसे किसान स्वयं न बना सके, जरूरत है सिर्फ जानकारी की एवं दृढ़ निश्चय की। 
6. छोटे-छोटे किसानों के पास हो अपना बीज-
उच्च गुणवत्तायुक्त बीज सही दामों में किसान को उपलब्ध हो पाना एक बड़ी चुनौती रहती है, जबकि बीज कृषि की कुंजी है। बीज नहीं, तो कुछ भी नहीं। चाहे हम कितने ही संसाधन क्यों न रख लें, लेकिन हमारे पास स्वयं का बीज नहीं, तो हमें गुलामी से कोई नहीं बचा सकता। देश में दूसरी हरित क्रान्ति लानी है, तो जरूरी है कि छोटे से छोटे किसान के पास भी अपना उन्नत बीज बैक हो, जिसमें वह स्वयं बीज तैयार कर सकें। जरूरत है ऐसे अभियान की जिसमें बैंक खाता की तरह ही हर किसान के पास उसका फाउण्डेशन बीज बैंक भी आसानी से उपलब्ध हो, ताकि वह बीजों को संरक्षित कर सके। 
7. हो सके बीजों का संरक्षण 
देश में जब अधिक अनाज की जरूरत पड़ी, तो हरित क्रान्ति के समय हाईब्रिड प्रजातियों, रासायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों के प्रयोग से हमें सफलता मिली। परिणाम आज हम खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर होने के साथ-साथ उसका निर्यात भी कर रहे हैं। अब जरूरत है गुणवत्तायुक्त उपज की। हाईब्रिड बीजों से हमने कम जमीन में अधिक उपज तो प्राप्त कर ली, पर अब हमें पौष्टिक गुणवत्तायुक्त एवं स्थानीय वातावरण को सहन करने वाली प्रजातियों के प्रयोगों पर जोर देना होगा। पांच बीघा जमीन वाले किसान चार बीघा में हाईब्रिड बीज बो ले, पांचवें बीघे में देशी उन्नत किस्म एवं उच्च गुणवत्ता वाले फाउण्डेशन बीज बोएं, ताकि वह 5वें बीघे से बीज को अगले वर्ष के लिए संरक्षित कर सके। इन बीजों को संरक्षित करने से उसे समय पर बोआई करने में सफलता मिलेगी। इससे समय एवं धन की बचत होगी। अगर किसान केवल हाईब्रिड बीज का प्रयोग कर रहा है और अपना बीज समाप्त कर दिया, तो निश्चित ही उसे मार्केट में हो रही उथल-पुथल एवं बिचौलियों से कोई नहीं बचा सकता।
8. सुरसा के मुख-सा बढ़ता कर्जः 
किसान कर्ज के चंगुल में फंसता है, तो उसका बाहर आना अत्यंत कठिन हो जाता है। खासकर साहूकारों से अधिक ब्याज कर्ज लेने वाले किसान। किसानों की आत्महत्या का प्रमुख बैंकों एवं साहूकारों का बढ़ता कर्ज होता है।
9. मौसम की मार और फसल बीमा-
फसल किसान की रीढ़ होती है। सीएसई के एक अध्ययन की माने तो किसानों की फसलों को बेमौसम बरसात, ओलावृष्टि, बाढ़, सूखा, चक्रवात आदि से राहत पहुंचाने में सरकारी तंत्र एवं व्यवस्था प्रभावी साबित नहीं हो पाई है। सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ‘‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’’ भी अपने मौजूदा स्वरूप में किसानों का भरोसा नहीं जीत पाई। इसमें व्यक्तिगत स्तर पर फसल बीमा लाभ आदि अनेक सुधारों की जरूरत है।
10. फसल के दाम में भारी अनिश्चितता- 
निरंतर खेती की लागत बढ़ती जा रही है, पर उस अनुपात में किसानों को फसलों के दाम बहुत कम मिल रहे हैं। सरकार की कोशिश रहती है कि फसलों के दाम कम से कम रहें, जिससे मंहगाई काबू में आए, पर सरकार उसी अनुपात में फसलों को उपजाने में आने वाली लागत को कम नहीं कर पाती। परिणाम किसान पिसता है। देशवासियों को सस्ता भोजन उपलब्ध कराने की सारी जिम्मेदारी एक किसान के कंधों पर डाल दी जाती है। खराब उत्पादन हुआ, तो किसान का नुक्सान, अगर ज्यादा उत्पादन हुआ, तो फसलों के दाम गिर जाते हैं। यानि दोनों स्थितियों में किसान को घाटा। यद्यपि सरकार द्वारा एमएसपी की दरें बढ़ाई गईं हैं, फिर भी कई बार निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी अधिक किसान की लागत आती है। जरूरत है अच्छी सप्लाई चेन विकसित करने की, जिससे किसान तथा उपभोक्ता दोनों को लुटने से बचाया जा सके। देश की खाद्य सुरक्षा और खाद्य संप्रभुता जैसे महत्वपूर्ण/संवेदनशील मुद्दे पर सरकार को गंभीर प्रयास युद्धस्तर पर करने चाहिए।
11. सिंचाई के लिए मौसम पर निर्भरता- 
हम बचपन से ही पढ़ते आ रहे हैं कि कृषि मानसून का जुआ है। अच्छी बरसात हो तो ठीक, वरना सब चौपट। हमारे देश में कृषि योग्य भूमि का केवल 40 प्रतिशत भाग ही सिंचित है, जबकि 60 प्रतिशत भाग असिंचित एवं मानसून पर आधारित है। भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद रिपोर्ट (2014) की माने तो भारत में सूक्ष्म सिंचाई की स्थिति अभी ठीक नहीं है। सूक्ष्म सिंचाई के अंतर्गत कुल क्षेत्रफल लगभग 5 मिलियन हेक्टेयर आता है, जिसमें से 3.06 मिलियन हेक्टेयर एवं 1.90 मिलियन हेक्टेयर फव्वारा, टपक सिंचाई के अंतर्गत क्रमशः आता है। 
12. अपर्याप्त भंडारण क्षमता-
अनाज, फल, सब्जी के उत्पादन के बाद पर्याप्त भंडारण व्यवस्था न होने से नुकसान होता है। इस साल पंजाब में गेहूं की सरकारी खरीद पिछले सभी आंकड़ों के पार 126.91 लाख टन रही। पड़ोसी हरियाणा में 87.39 लाख टन गेहूं खरीदा गया। मध्य प्रदेश में सरकारी एजेंसियों ने 72.87 लाख टन गेहूं की खरीद की। गेहूं का सरप्लस उत्पादन करने वाले इन तीनों राज्यों ने कुल मिलाकर 18 जून 2018 तक 287.17 लाख टन गेहूं खरीदा है। अब इन राज्यों के सामने इतनी अधिक मात्रा में खरीदे गए अनाज को सुरक्षित रूप से भंडारण करने का मुश्किल काम है।
13. किसान को अपना भाग्य बदलने के लिए करना होगे यह काम-
किसानों को अपना भाग्य बदलने के लिए वर्तमान परंपरागत खेती को छोड़कर कृषि और पशुपालन के समन्वय पर आधारित जैविक खेती की ओर बढ़ना होगा। कृषि में आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके हर्बल, औषधीय और बागवानी की और ध्यान देना होगा। 
14. देश ऋणी है अन्नदाता किसान का-
निरंतर जनसंख्या वृद्धि के कारण खाद्यान्नों की मांग बढ़ रही है। खाद्य पदार्थों की आपूर्ति देश में किसान निरंतर कर रहे हैं। वर्ष 2014-15 में देश में अनाज उत्पादन 257 मिलियन टन, अंडा उत्पादन 78 अरब अंडे प्रतिवर्ष, मछली उत्पादन 10 मिलियन टन, पोल्ट्री मीट उत्पादन 3 मिलियन टन एवं देश ने विश्व का 18.5 प्रतिशत दूध उत्पादन करके प्रथम स्थान पाया। बागवानी किसानों ने बागवानी का रिकार्ड उत्पादन 283 मिलियन टन करके कमाल कर दिया, जिससे देश की खाद्य व पोषण सुरक्षा को मजबूती मिली है।
15. ताकि किसान बन सके देश का सहारा-किसानों को मजबूत बनाने के लिए उठाएं जाएं कदम-
आज के भौतिकवादी युग ने किसानों को लाचार व बेचारा बना दिया है। जरूरी है कि कृषक सशक्तिकरण के लिए प्रभावी कदम उठाएं जाएं, ताकि किसान बेचारा नहीं देश का मजबूत सहारा बन सके-

  • किसानों की एक न्यूनतम आय सुनिश्चित की जाए, उनकी आय में निरंतर वृद्धि के प्रयास हों और उन्हें कर्ज नहीं बल्कि नियमित आय मिले।
  • किसान को कृषक के साथ-साथ कृषि उद्यमी बनाने का प्रयास किया जाए। 
  • किसानों को उपज का न्यायोचित व लाभप्रद मूल्य मिले।
  • लघु व सीमांत किसानों के लिए वेतन आयोग का गठन किया जाए।
  • क्षेत्रीय स्तर पर किसान को सीधे उपभोक्ता से जोड़ने के प्रयास हो।
  • पंचायत स्तर पर एक कृषि क्लिनिक या कृषि अस्पताल खोलने की व्यवस्था की जाए। 
  • जैविक, प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देकर एक टिकाऊ खेती के बारे में किसान को जागरूक बनाया जाए।
  • उपयुक्त बीज, खाद, पेस्टिसाइड आदि के साथ-साथ नवीन तकनीकियों से किसानों को अवगत करवाया जाए।
  • किसान खेत स्कूल विकसित हों तथा प्रभावी कृषि विस्तार सेवाओं के अंतर्गत किसान तक पहुंचा जाए।
  • भारतीय कृषि प्रशासनिक सेवा का गठन हो, जो जिला कृषि व्यवस्था, विपणन, कृषि आपदा, कृषि व्यापार, कृषि नीतियों का प्रभावी क्रियान्वयन कर सके।
  • लघु, सीमान्त व किराए पर जमीन लेकर खेती करने वाले किसानों के लिए भी बैंकों से आसान कर्ज की व्यवस्था हो।
  • जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न स्थितियों से निपटने के लिए मौसम आधारित पूर्वानुमान जानकारियां, उपयोगी कृषि सलाह, जलवायु अनुकूलन, बीज आदि किसानों को उपलब्ध करवाया जाए।
  • फसल खराब होने पर समुचित राहत व बीमा लाभ किसानों को मिले।
  • भारत में आधुनिक कृषि शिक्षा एवं अनुंसधान को बल मिले। कृषि शिक्षा अनिवार्य विषय के रूप में 10वीं कक्षा तक पाठ्यक्रम में शामिल हो।

 यह संकट केवल किसानों का संकट न मानकर इसपर एक विस्तृत परिपेक्ष्य में नजर डालने की जरूरत है। चूंकि याद रहे यदि देश का कृषि कार्य फायदेमंद नहीं रहा, यह मुंशी प्रेमचंद ने कई दशक पूर्व ही साबित कर दिया था कि कैसे होरी किसान से मजदूर बन बैठता है।  आज देश के अधिकतर भागों में किसान आंदोलनरत हैं। यह किसी एक दिन का परिणाम नहीं है। समाज और सरकार को चाहिए ऐसी व्यवस्था हो कि किसानों को उनकी मेहनत का वाजिब मूल्य और सम्मान मिले, क्योंकि किसान ही वास्तविक अन्नदाता है। याद रहे कि किसान हारता है, तो ये देश की भी हार होगी। और फिर हिंदुस्तान जैसे एक कृषिप्रधान देश की समृद्धि का रास्ता तो, गांव के खेत खलिहानों की समृद्धि से होकर ही जाएगा। और इसके लिए जरूरत है किसान हितैषी नीतियां, तकनीकियां और प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग हो, ताकि हम सतत् विकास की परिकल्पना कर सकें। 

आज का विचार

सुंदर विचार जिनके साथ हैं। वे कभी एकांत में नहीं हैं।