सोमवार, 4 अगस्त 2025

माँ काली की पूजा क्यों रात में की जाती है?

 हिंदू धर्म में देवी-देवताओं की पूजा का समय, विधि और भाव—सब कुछ अत्यंत महत्व रखता है। जहाँ देवी लक्ष्मी को दीपावली की रात में, सरस्वती को वसंत पंचमी में, और दुर्गा को दिन में पूजा जाता है—वहीं, माँ काली की पूजा विशेष रूप से रात में ही की जाती है

लेकिन क्यों? माँ काली की उपासना दिन के उजाले में नहीं, बल्कि रात्रि के अंधकार में क्यों की जाती है?

इस प्रश्न का उत्तर केवल धार्मिक नहीं, तांत्रिक, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी गहराई में छुपा है। आइए जानें इस अद्भुत परंपरा के पीछे की रहस्यमयी शक्ति को।


 1. माँ काली: अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाली देवी

‘काली’ शब्द संस्कृत के "काल" से निकला है, जिसका अर्थ है समय, मृत्यु और अंधकार।
माँ काली उस ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती हैं जो अंधकार को नष्ट कर आत्मज्ञान का प्रकाश देती है।
उनका विकराल रूप—श्याम वर्ण, रक्तमाला, खप्पर, खुला केश—दरअसल जीवन के भय, मोह और अहंकार से मुक्ति का प्रतीक है।

रात्रि का समय, जो प्रतीत होता है भयावह, वही उनके लिए उपयुक्त समय है क्योंकि वे अंधकार को आलिंगन में लेकर उसमें छिपे प्रकाश को प्रकट करती हैं।


2. रात्रि: साधना, ध्यान और आत्मा की यात्रा का समय

रात वह समय होता है जब बाहरी दुनिया शांत होती है और आंतरिक चेतना जागृत होती है।
रात्रि में ध्यान, तप और साधना की शक्ति कई गुना बढ़ जाती है। माँ काली की पूजा रात्रि में करने से साधक अपने भीतर की शक्ति से जुड़ पाता है।

तंत्र शास्त्र में कहा गया है:
"निशा समये देवी साध्यते महाकाल्या रूपेण।"
अर्थात्—महाकाली रात्रि में ही अपने पूर्ण प्रभाव में पूजनीय होती हैं।


 3. तंत्र साधना की देवी हैं माँ काली

माँ काली की उपासना विशेष रूप से तांत्रिक परंपरा से जुड़ी है, जो रात के समय फलदायी मानी जाती है।
तंत्र मार्ग में रात्रि, विशेषकर अमावस्या की रात्रि, को साधना और सिद्धि का श्रेष्ठ काल बताया गया है।
यह समय भूत, प्रेत, आत्मा, ग्रह और तमोगुण से संबंधित शक्तियों को साधने का होता है—और माँ काली इन सब पर विजय की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं।


 4. भय का सामना करने की शिक्षा देती हैं काली

माँ काली को देखकर अनेक लोग भयभीत हो जाते हैं—परंतु सच्चे साधक के लिए वे भय से मुक्ति की देवी हैं।
रात्रि का अंधकार और मौन वातावरण साधक को अपने भीतर छिपे भय, वासना और अहंकार से सामना करने का अवसर देता है।

जो व्यक्ति माँ काली की रात्रि में आराधना करता है, वह जीवन के हर अंधेरे को पार करने की शक्ति प्राप्त करता है।


5. क्यों नहीं होती दिन में पूजा?

दिन का समय सतोगुण प्रधान होता है—जिसमें कर्म, भोग और सामाजिक गतिविधियाँ केंद्रित होती हैं।
परंतु माँ काली की उपासना तमोगुण की प्रधानता वाले समय में होती है—जहाँ आत्मनियंत्रण, मौन, ध्यान और आत्मा की शुद्धि मुख्य होती है।

इसलिए दिन की भक्ति अधिकतर बाहरी होती है, जबकि रात्रि की भक्ति भीतर की यात्रा है—और माँ काली इसी भीतरी मार्ग की देवी हैं।


6. रामकृष्ण परमहंस और रात्रि साधना

19वीं शताब्दी के महान संत रामकृष्ण परमहंस ने माँ काली की उपासना दक्षिणेश्वर मंदिर में रात्रिकालीन ध्यान और प्रेम से की थी।
उन्होंने माँ को साक्षात् जीवित रूप में देखा और कहा—
"माँ केवल मूर्ति नहीं, वह अनुभव हैं, जो रात्रि के मौन में प्रकट होती हैं।"


7. वैज्ञानिक दृष्टिकोण: मन और चेतना का शुद्धिकरण

रात के समय हमारा मस्तिष्क थीटा वेव्स (Theta Waves) पर कार्य करता है—जो गहरे ध्यान, ध्यानावस्था और अवचेतन मन से जुड़े होते हैं।
इस अवस्था में व्यक्ति स्वयं से गहराई से जुड़ता है, और माँ काली की साधना इसी प्रक्रिया को बल देती है।

 8. अमावस्या: माँ काली का विशेष दिन

अमावस्या, जब चंद्रमा नहीं दिखता और सम्पूर्ण रात्रि अंधकार से भरी होती है—उसी दिन माँ काली की महासाधना की जाती है।
यह वह समय है जब तमस की ऊर्जा चरम पर होती है, और माँ काली उस ऊर्जा को रूपांतरित कर साधक को शुद्ध चेतना की ओर ले जाती हैं।

माँ काली की पूजा केवल एक धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है—जिसमें साधक अपने अंदर के डर, मोह, अज्ञान और अहंकार को पहचानकर उनसे मुक्ति पाता है।

रात्रि का अंधकार, जो बाहरी रूप से डरावना लगता है—माँ काली की कृपा से वही प्रकाशमय आत्मसाक्षात्कार का माध्यम बनता है।

इसलिए माँ काली की पूजा रात्रि में करना केवल परंपरा नहीं, बल्कि एक आंतरिक जागरण की यात्रा है।


संदर्भ एवं शोध

  • काली तंत्र रहस्य, गीता प्रेस

  • Indian Tantra Traditions, David Gordon White

  • Sri Ramakrishna Kathamrita, Mahendranath Gupta

  • योग और चेतना विज्ञान, डॉ. दीपक आचार्य

  • तांत्रिक साधना और रात्रि का महत्व, वाराणसी विश्वविद्यालय शोध पत्र

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