श्रीकृष्ण—सिर्फ एक देवता नहीं, बल्कि धर्म, प्रेम, बुद्धि और राजनीति के अद्भुत समन्वय का जीवंत स्वरूप।
उनकी लीलाएं जितनी दिव्य हैं, उतनी ही रहस्यमयी भी।
हम सभी ने गीता का उपदेश, माखन चोरी, रासलीला और महाभारत में उनकी भूमिका सुनी है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि श्रीकृष्ण से जुड़े कई ऐसे रहस्य हैं जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं?
आइए जानते हैं ऐसे 10 रोचक, दुर्लभ और अल्पज्ञात रहस्य — जो श्रीकृष्ण को एक नई दृष्टि से देखने को प्रेरित करते हैं।
🔷 1. श्रीकृष्ण का जन्म ‘अष्टमी’ नहीं, रोहिणी नक्षत्र में हुआ था
कृष्ण जन्माष्टमी भले ही अष्टमी तिथि पर मनाई जाती है, परंतु ज्योतिष अनुसार उनका जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था — जो उन्हें चंद्रमा से विशेष शक्ति प्रदान करता है।
🔷 2. कृष्ण ने केवल 8 पत्नियां नहीं, 16,108 विवाह किए थे
कई लोग सोचते हैं कि रुक्मिणी, सत्यभामा आदि 8 ही प्रमुख पत्नियां थीं।
परंतु 16,100 कन्याएं जिन्हें नरकासुर के बंदीगृह से मुक्त किया गया था, समाज के तिरस्कार से बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने उनसे विवाह किया।
🔷 3. श्रीकृष्ण ने कभी शस्त्र नहीं उठाया, लेकिन शस्त्रों से भी प्रभावशाली रहे
महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण ने संकल्प लिया था कि वे शस्त्र नहीं उठाएंगे।
फिर भी उनकी नीति, संवाद, रणनीति और उपदेशों ने युद्ध का परिणाम तय किया।
🔷 4. कृष्ण के मुख में ब्रह्मांड का दर्शन केवल यशोदा को नहीं, औरों को भी हुआ
सबसे प्रसिद्ध कथा यशोदा माता की है, लेकिन नारद और उद्धव जैसे ऋषियों ने भी श्रीकृष्ण को विराट रूप में देखा।
🔷 5. कृष्ण की मृत्यु एक श्राप का परिणाम थी
गांधारी के श्राप के अनुसार, यदुवंश का विनाश और कृष्ण की मृत्यु नियति बनी।
एक शिकारी ने श्रीकृष्ण के पैर को हिरण समझ कर तीर चला दिया — और यहीं उनका लीला अवसान हुआ।
🔷 6. श्रीकृष्ण का शरीर धरती पर नहीं मिला
उनकी मृत्यु के बाद उनका शरीर कहीं नहीं मिला।
ऐसा कहा जाता है कि वे अपने स्वरूप में बैकुंठ लौट गए और केवल उनका मानव रूप ही त्यागा गया।
🔷 7. बाल्यकाल में कृष्ण की मृत्यु का प्रयास 14 बार किया गया था
पूतना, शकटासुर, तृणावर्त, अघासुर आदि राक्षसों ने बालकृष्ण की हत्या की कोशिश की — परंतु सभी असफल रहे।
🔷 8. श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता 3 बार सुनाई थी
महाभारत में प्रसिद्ध संवाद एकमात्र नहीं था।
अन्य अवसरों पर भी उन्होंने गूढ़ ज्ञान अर्जुन और उद्धव को दिया, जिन्हें ‘उद्धवगीता’ भी कहा जाता है।
🔷 9. श्रीकृष्ण की वंशी को उन्होंने स्वयं त्याग दिया था
कहा जाता है कि रुक्मिणी की मृत्यु के बाद कृष्ण ने अपनी बांसुरी को छोड़ दिया और कभी दोबारा नहीं बजाई।
🔷 10. उनका एक नाम ‘रणछोड़’ भी है — पर यह कायरता नहीं, करुणा थी
उन्होंने कालयवन से युद्ध न कर के रणभूमि छोड़ी, जिससे जनता का अनावश्यक रक्तपात रोका।
यही कारण है कि उन्हें ‘रणछोड़ राय’ कहा जाता है — रण को छोड़कर युद्ध नहीं, अहिंसा का संदेश देना।
श्रीकृष्ण को जानना केवल उनका नाम स्मरण करना नहीं, बल्कि उनके भीतर समाहित नीति, करुणा, भक्ति और विवेक को समझना है।
इन गूढ़ रहस्यों को जानने से उनकी लीला और मानवता के प्रति दृष्टिकोण और अधिक स्पष्ट होता है।
References & Research Notes:
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श्रीमद्भागवत पुराण – गीता प्रेस संस्करण
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महाभारत – वेदव्यास रचित, भीष्म पर्व और शांति पर्व
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नारद पुराण, विष्णु पुराण
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