हममें से अधिकतर लोग मंदिरों में पूजा करते समय भगवान को तुलसी के पत्ते अर्पित करते हैं। विशेषकर भगवान विष्णु, श्रीकृष्ण और श्रीराम की पूजा में तुलसी का बहुत महत्व है।
लेकिन आपने ध्यान दिया होगा कि हनुमान जी की पूजा में तुलसी नहीं चढ़ाई जाती।
तो क्या कारण है?
क्या यह किसी परंपरा का हिस्सा है?
या फिर इसके पीछे कोई पौराणिक कथा छिपी है?
आइए जानते हैं तुलसी और श्रीहनुमान जी से जुड़ा यह रोचक और रहस्यमय प्रसंग।
🌿 तुलसी: एक पवित्र पौधा
तुलसी को सनातन धर्म में माता तुलसी के रूप में पूजा जाता है।
यह पौधा पवित्रता, श्रद्धा और शुद्धता का प्रतीक है।
भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी पत्ता आवश्यक माना जाता है — बिना तुलसी के श्रीहरि को भोग भी स्वीकार्य नहीं होता।
🔱 हनुमान जी: भगवान राम के परम् भक्त
श्री हनुमान जी को रामभक्त शिरोमणि, अष्टसिद्धि के स्वामी, और कर्पूरगौर वज्र देहधारी माना जाता है।
वे भगवान शिव के 11वें रुद्रावतार हैं।
हनुमान जी को सिंदूर, चमेली का तेल, और लाल फूल चढ़ाने की परंपरा है — तुलसी नहीं।
📖 पौराणिक कारण: तुलसी और हनुमान जी की कथा
🌸 तुलसी विवाह कथा से जुड़ा कारण:
पौराणिक कथा के अनुसार, तुलसी देवी पूर्व जन्म में "ब्रंदा" नाम की धर्मपरायण पत्नी थीं, जिनके पति दानव शंखचूड़ थे।
शंखचूड़ को हराने के लिए भगवान विष्णु ने ब्रंदा का पतिव्रता धर्म भंग किया, जिससे क्रोधित होकर ब्रंदा ने उन्हें श्राप दिया:
"हे विष्णु! तुमने मेरा छल किया है, इसलिए मैं तुम्हारी पत्नी के रूप में जन्म लेकर तुम्हारे साथ विवाह करूंगी, परंतु तुम्हारे किसी अवतार के सेवक से मेरा संबंध नहीं रहेगा।"
इस श्राप के फलस्वरूप तुलसी का जन्म हुआ और उनका विवाह शालिग्राम (भगवान विष्णु के रूप) से हुआ, जिसे तुलसी विवाह कहा जाता है।
❌ श्राप का असर:
कहा जाता है कि तुलसी जी ने यह भी कहा कि "मेरे पत्तों का स्पर्श कभी भी किसी ब्रह्मचारी को नहीं होगा।"
और हनुमान जी चिरब्रह्मचारी हैं।
इसलिए श्रद्धा स्वरूप, उनके उपासकों ने तुलसी का अर्पण वर्जित माना।
🧘♂️ दूसरा धार्मिक दृष्टिकोण: तपस्वी जीवन
श्री हनुमान जी:
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पूर्ण ब्रह्मचारी हैं
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शिव के रुद्रावतार हैं
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उनके पूजन में शक्ति, बल, और तप का विशेष महत्व होता है
तुलसी मुख्य रूप से:
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सौम्यता, प्रेम, सौभाग्य और वैवाहिक जीवन का प्रतीक है
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यह ऊर्जा ‘विष्णु-लक्ष्मी’ तत्त्व से जुड़ी है
हनुमान जी तपस्वी और निष्कलंक ब्रह्मचारी हैं, इसलिए उन्हें तुलसी जैसे "सौम्य वैवाहिक प्रतीक" नहीं चढ़ाए जाते।
🛕 हनुमान जी को क्या अर्पित करें?
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सिंदूर (चूने वाला)
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चमेली का तेल
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लाल फूल
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गुड़-चना, बूँदी, केला आदि
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राम नाम की पुस्तकें या मंत्रों का जाप
🔎 क्या तुलसी चढ़ाना दोषपूर्ण है?
यदि कोई अज्ञानवश तुलसी चढ़ा भी दे तो यह दोष का कारण नहीं बनता —
परंतु जब परंपरा और भावनाओं का ज्ञान हो जाए, तो उसका सम्मान करना ही धर्म है।
श्री हनुमान जी को तुलसी अर्पित न करने के पीछे कोई दंड या डर नहीं है, बल्कि यह श्रद्धा और मर्यादा का विषय है।
वे स्वयं तुलसी माता के प्रति सम्मान रखते हैं, परंतु उनके आराधकों ने परंपरा और संयम के भाव से तुलसी अर्पण को अलग रखा।
यह प्रसंग हमें यह भी सिखाता है कि हर प्रतीक, हर नियम — केवल बाहरी नहीं बल्कि भीतर के भावों से जुड़ा होता है।
References & Research:
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शिव पुराण
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विष्णु पुराण
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पद्म पुराण
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तुलसी विवाह कथा – स्कंद पुराण से
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गीता प्रेस, गोरखपुर की व्याख्याएं
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आध्यात्मिक प्रवचन – आचार्य बालकृष्ण, श्री श्री रविशंकर, रामकिंकर उपाध्याय
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