शुक्रवार, 28 अक्टूबर 2016

जाने धनतेरस के महत्व को


किसी ने सच ही कहा है कि भारत त्यौहारों का देश है। यहां अनेक धर्म और जाति के लोग रहते हैं इसलिए भांति-भांति के त्यौहार और पर्व भी बनाएं जाते हैं। इसी श्रृंखला में, आज धनतेरस का पवित्र महापर्व है, जिसे ब्रह्माण्ड के प्रथम चिकित्सक और देवताओं के वैद्य “धन्वन्तरी” की याद में मनाया जाता है।

जैसाकि हम बचपन से ही पढ़ते आ रहे हैं कि स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा और अमूल्य धन है। अब पूछेंगे कि फिर आज धातु की खरीददारी ही क्यों की जाती है, तो यहां स्पष्ट करना जरूरी है कि आज के ही दिन यानि आश्विन महीने के 13वें दिन समुद्र मंथन के दौरान ब्रह्माण्ड के प्रथम चिकिसक भगवान् धन्वन्तरी हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इसीलिए ऐसी मान्यता है कि आज के दिन धातु घर लाने से उसके साथ ही अमृत के अंश भी घर आते हैं। और भई अमृत तो अच्छे स्वास्थ्य की गारंटी है। अगर अमृत घर आएगा तो बीमारी नहीं आएगी।
मजे की बात तो यह है कि आज भी बिहार राज्य के भागलपुर के “मंदारहिल” पर्वत पर समुद्र मंथन के दौरान हुए रस्सी के (शेषनाग) रगड़ के चिह्न मौजूद हैं।

धनतेरस की एक बहुत ही प्रचलित किवदंती है कि राजा हिमा का एक 16 वर्ष का पुत्र था जोकि कुंडली के अनुसार अल्पायु था। कुंडली के अनुसार शादी के चैथे दिन उसकी मृत्यु सर्पदंश से होनी थी पर शादी के चैथे दिन उसकी युवा एवं चतुर पत्नी ने राजकुमार को कहानियां एवं गीत सुनाकर रात भर सोने नहीं दिया। राजकुमार के चारो ओर दीप प्रज्ज्वलित कर दिये। साथ ही साथ शयनकक्ष के बाहर सोने-चाँदी के सिक्कों की ढेर लगाकर रख दिये। विधि विधान के अनुसार समय पर नागिन के रूप में यमदूत आए पर सोने-चाँदी के सिक्कों की चमक से नागिन की आँखें चैंधिया गयी और वो आगे नहीं बढ़ पाई। वहीं बैठ गयी (यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि सांप बहुत तेज रोशनी में नहीं देख पाते हैं) और अगली सुबह वापस लौट गयी। इस प्रकार राजकुमार की धर्मपत्नी ने अपने चातुर्य और कौशल से उस मनहूस घड़ी को टालकर पति को बचा लिया। इसीलिए आज की रात को “यमदीपदान” के रूप में भी मनाने की परंपरा है। रात भर दीप जलाकर बाहर जल रखा जाता है।

सभी मित्रो एवं उनके परिजनों को अच्छे स्वास्थ्य एवं ढेर सारे धन प्राप्ति की कामनाओं के साथ आज धनतेरस और आगामी दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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