बुधवार, 16 सितंबर 2015

मानसून की कमजोरी से घटेगी जीडीपी की ग्रोथ रेट

30 साल के सबसे बड़े सूखे जैसे हो सकते हैं हालात

हमारे देश में अल नीनो से कमजोर होते मानसून ने देश के अनेक स्थानों में सूखे के हालात पैदा कर दिए हैं। जहां एक ओर, फसलों पर मौसम का प्रतिकूल प्रभाव पड़ने से उत्पादन प्रभावित हुआ है वहीं दूसरी ओर इकोनॉमी पर भी इसका गहरा असर होने की संभावना है। इससे लगभग 30 वर्ष बाद फिर से निरंतर दूसरे वर्ष सूखे की स्थिति पैदा हो गई हैं। डीएच पई पनान्दिकर (प्रेसीडेंट, आरपीजी फाउंडेशन ) की माने तो कम वर्षा की सबसे अधिक मार दक्षिण भारतीय राज्यों पर पड़ी है। इससे दलहन व धान का उत्पादन प्रभावित हो सकता है। 2 प्रतिशत तक खाद्यान का उत्पादन कम हो सकता है जोकि ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को अधिक प्रभावित करेगा। इससे कंज्यूमर ड्यूरेबल, टू-व्हीलर्स व एफएमसीजी प्रोडक्ट की मांग में कमी की संभावना है। देश की जीडीपी ग्रोथ, जोकि अभी 7 प्रतिशत है वेदर कंडीशन्स की खराबी से, 0.50 प्रतिशत घट सकती है। हालांकि महंगाई बढ़ने की फिलहाल कोई संभावना नजर नहीं आ रही है। चूंकि क्रूड की कीमतें निरंतर कम हो रही हैं। हां, सरकार पर सब्सिडी का बोझ बढ़ सकता है।

कृषि मंत्रालय, भारत सरकार के आंकड़ों की माने तो 11 सितंबर तक देश भर में 1012.01 लाख हेक्टेयर में खरीफ फसलों बोई गई। गत वर्ष किसानों ने 994.49 लाख हेक्टेयर में खेती की थी। धान की बुआई 368.41 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले वर्ष यह आंकड़ा 366.51 लाख हेक्टेयर था। विशेष बात यह है कि दलहन के रकबे में काफी बढ़ोतरी हुई है। देश के 110.08 लाख हेक्टेयर में दलहन की बुआई हुई है जबकि पिछले वर्ष 99.14 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई थी। कपास व जूट की बुआई भी पिछले वर्ष की अपेक्षा कम हुई है।
पिछले साल देश भर में सामान्य के मुकाबले 12 फीसदी कम बारिश हुई थी, जिसके कारण खरीफ फसलों के उत्पादन में करीब 2 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। वहीं 2014-15 के दौरान कुल खाद्यान उत्पादन 4.7 फीसदी घटने की संभावना है।

आपको बता दें कि वर्ष 2015 के मानसून के चार (जून-सितंबर) महीनों में से तीन महीने निकाल चुके हैं। 1 जून से 13 सितंबर तक देश में केवल 673.5 मिलीमीटर वर्षा हुई है जोकि सामान्य से 16 फीसदी कम है जबकि 2014 में 12 फीसदी कम बारिश हुई थी। इस प्रकार 1986-87 के बाद पहली बार निरंतर दो वर्ष सूखे के हालात बने हैं। दक्षिण भारत के तेलंगाना, उत्तरी कर्नाटक व केरल आदि में सूखे जैसे हालात हैं। यही बात स्काईमेट(प्राइवेट वेदर एजेंसी) ने भी बताई थी कि अगस्त के दौरान देश में सामान्य के मुकाबले 8 फीसदी कम बारिश होगी। 2009 के बाद 2015 सबसे अधिक सूखा वर्ष साबित हो सकता है। इसमें भी मुख्य रूप से दक्षिण भारत और पश्चिम भारत में विशेष रूप से सूखे के हालात पैदा हो गए हैं।
भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार वर्षा की स्थिति
                       राज्य वर्षा (सामान्य से कम प्रतिशत में)
                      केरल व कर्नाटक               28
                      तेलंगाना                       23
                      महाराष्ट्र                       44
                      गुजरात                       32
                      पंजाब और हरियाणा               40

मानसून की समाप्ति के बाद किसान खेतों की सिंचाई के लिए जलाशयों के पानी का उपयोग करते हैं। सूखे का असर इन पर विशेष रूप से हुआ है। दक्षिणी भारत के तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक व तमिलनाडु राज्यों के 31 जलाशयों में 16.93 बिलियन क्यूबिक मीटर्स पानी उपलब्ध है, जो उनकी कुल भंडारण क्षमता का केवल 33 प्रतिशत ही है। पिछले साल इसी अवधि में कुल भंडारण क्षमता का 71 प्रतिशत पानी इन जलाशयों में था। इसमें अच्छी खबर यह है कि पिछले वर्ष की अपेक्षा पंजाब, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, गुजरात व मध्य प्रदेश के जलाशयों में पानी का स्तर बढ़ा है। इस स्थिति में आईएमडी के डायरेक्टर लक्ष्मण सिंह राठौर को आशा की किरण दिख रही है। उन्होंने कहा कि जून-सितंबर तक मानसून सीजन में सामान्य की अपेक्षा 12 से 14 प्रतिशत की कमी तो दर्ज हो सकती है पर आने वाले दिनों में बारिश में सुधार की उम्मीद है। आईएमडी की माने तो पूर्वी, पूर्वोत्तर, दक्षिण के राज्यों व महाराष्ट्र में वर्षास्तर बढ़ सकता है। हां, उत्तर भारत व पश्चिम भारत में स्थिति ऐसी ही रहेगीं।

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