सोमवार, 9 मई 2016

एमबीए युवाओं ने लाखों का पैकेज छोड़ खोल ली डेरी
करते हैं शुद्ध दूध का वायदा


कभी कहा जाता था कि डंगर के साथ तो डंगर बनना पड़ता है। यानि पशुओं के बीच तो पशु की तरह अनपढ़ और गंवार व्यक्ति ही काम कर सकता है। इस मिथ को तोड़ दिया है आज की शिक्षित युवा पीढ़ी ने। इसके अनेक उदाहरण हैैैं जिसमें से एक आज हम आपके लिए लेकर आए हैं।
बिलासपुर के रहने वाले तीन युवकों के पास भगवान का दिया सबकुछ था जिसकी आजकल के युवा को इच्छा होती है। इनमें से दो युवक तो एमबीए पास हैं जबकि एक बहन हेयर स्टाइल एक्सपर्ट है। तीनों भाई-बहन मल्टीनेशनल कंपनियों में कार्यरत थे वो भी तीन लाख रुपए मासिक वेतन के पैकेज पर। सत्येंद्र व श्वेता 50-50 हजार रुपए मासिक पर मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करते थे। पढ़ाई पूरी करने से पहले ही दो लाख रुपए मासिक सैलेरी पर शिल्पी की प्लेसमेंट मुंबई में हाकिम अली कंपनी में हो गई।

करीब 7 एकड़ में सेमरताल गांव (रतनपुर रोड, बिलासपुर ) में सुरभि गौशाला है जिसके संचालक हैं- सत्येंद्र सिंह राजपूत (32), श्वेता राजपूत (30) व शिल्पी राजपूत (25)। जहां सत्येंद्र एमबीए (रिटेल) है तो श्वेता ने एमबीए (मार्केटिंग) किया है। शिल्पी ने हेयर स्टाइल में इंटरनेशनल सर्टिफिकेट हासिल किया है। तीनों में मन थी कुछ नया और अलग की इच्छा जिसका नतीजा यह हुआ कि वे गांव लौट आए और डेरी का व्यवसाय शुरू कर दिया। वास्तव में हुआ यूं कि भाई-बहन नौकरी को छोड़ना चाहते थे पर समझ नहीं आ रहा था कि आखिर क्या व्यवसाय करें ताकि आमदनी के साथ-साथ समाज सेवा भी हो सके। ऐसे में, गैस पर दूध गर्म करने के लिए पर भूल जाने से दूध जल गया। बर्तन की सतह जल गई थी और उसमें दूध की एक बूंद भी नहीं थी।  काफी परिचर्चा के बाद निष्कर्ष निकला कि घर में अब तक मिलावटी दूध आ रहा था। इसी से प्रेरित होकर उन्होंने डेरी खोली।

कामों में आसपास में बांट लिया गया। गाय की देखभाल, सफाई व दूध निकालने की जिम्मेदारी सत्येंद्र को मिली तो एकाउंट रखने का उत्तरदायित्व श्वेता को दिया गया। शिल्पी को नौकर के साथ स्कूटी पर घर-घर दूध पहुंचाने का काम मिला है। पर इन्होंने संकल्प लिया कि चाय बनाने वालों को दूध नहीं बेचेगें। वजह आज बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक को शुद्ध दूध नहीं मिल रहा और उनके स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ रहा है। चाय तो दूध पावडर से भी बना सकती है। यह दूध की शुद्धता की जांच के लिए लेक्टोमीटर का उपयोग करते हैं।
सत्येंद्र की माने तो नौकरी करते हुए महसूस हुआ कि वह दूसरों के लिए 10 से 12 घंटे तक काम करने की बजाय सुकून देने वाला खुद का कारोबार कर सकता है। विद्युत मंडल में अधिकारी पिता एचएस राजपूत के मार्गदर्शन एवं रिटायरमेंट फंड तथा 13 लाख के बैंक लोन पर गौशाला खड़ी की गई। 6 लाख रुपए में 9 साहीवाल और एक गिर नस्ल की गायें खरीदी गई। इनमें से 5 गाय 55 लीटर प्रतिदिन दूध दे रही हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें