हिंदू धर्म में त्रिमूर्ति—ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव)—को सृष्टि, पालन और संहार का प्रतीक माना गया है।
जहां विष्णु जी और शिव जी की पूजा बड़े स्तर पर होती है, वहीं ब्रह्मा जी के मंदिर ना के बराबर हैं।
सवाल उठता है —
"क्या ब्रह्मा जी कम शक्तिशाली हैं?"
"क्या उन्होंने कोई ऐसा कार्य किया जिससे उनकी पूजा वर्जित हो गई?"
या
"इस रहस्य के पीछे कोई गहरी दार्शनिक भावना छिपी है?"
आइए इस लेख में इन सभी प्रश्नों के उत्तर खोजने का प्रयास करते हैं।
ब्रह्मा जी कौन हैं?
ब्रह्मा जी को सृष्टि के रचयिता के रूप में जाना जाता है।
उन्होंने ही चारों वेद, देवताओं, ऋषियों और समस्त चर-अचर जगत की रचना की।
उन्हें चार मुखों वाला माना जाता है, जो चार वेदों और चार दिशाओं का प्रतीक है।
ब्रह्मा जी की पूजा क्यों नहीं होती? – पौराणिक कारण
🪔 (i) शिव पुराण के अनुसार:
एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु जी में यह विवाद हो गया कि कौन श्रेष्ठ है।
इसी दौरान एक अनंत अग्निस्तंभ (ज्योतिस्तंभ) प्रकट हुआ।
शिव जी ने परीक्षा लेने के लिए कहा – "जो इस स्तंभ के अंत को खोज ले, वही श्रेष्ठ।"
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विष्णु जी नीचे की ओर 'पाताल' की ओर गए लेकिन अंत न मिला।
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ब्रह्मा जी ऊपर की ओर गए और एक केतकी पुष्प से झूठ बुलवाया कि उन्होंने अंत देखा है।
इस झूठ के कारण शिव जी ने क्रोधित होकर उन्हें श्राप दिया –
“हे ब्रह्मा, तुमने मिथ्या भाषण किया है, अतः तुम्हारी पूजा धरती पर नहीं की जाएगी।”
🪔 (ii) भागवत पुराण की दृष्टि से:
ब्रह्मा जी ने स्वयं स्वीकार किया कि वे माया के प्रभाव से भ्रमित हो सकते हैं।
जब ब्रह्मा जी ने श्रीकृष्ण की शक्ति की परीक्षा लेनी चाही, तब उन्होंने देखा कि
कृष्ण स्वयं ब्रह्मांड के अधिष्ठाता हैं।
इससे यह धारणा बनी कि ब्रह्मा, माया के अधीन हैं, इसलिए उनकी पूजा स्थायी रूप से नहीं की जाती।
ब्रह्मा जी के मंदिर क्यों नहीं हैं?
भारत में हजारों विष्णु और शिव मंदिर हैं, लेकिन ब्रह्मा जी का केवल एक प्रमुख मंदिर है:
🌟 पुष्कर (राजस्थान) का ब्रह्मा मंदिर।
मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने वहाँ यज्ञ किया था और वहां उनकी पूजा की अनुमति मिली थी।
अन्य कारण:
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ब्रह्मा जी की पूजा की परंपरा कभी संस्थागत नहीं बनी।
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उनकी पूजा की विधियाँ जटिल और वैदिक यज्ञों पर आधारित हैं।
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आम भक्तों को उनसे “पालन” या “कृपा” की अपेक्षा कम रही है, क्योंकि वे ‘रचना’ के बाद निष्क्रिय माने जाते हैं।
दार्शनिक दृष्टिकोण:
दार्शनिक रूप से देखें तो:
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ब्रह्मा = "बुद्धि" या "संकल्प शक्ति" का प्रतीक हैं।
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परंतु बुद्धि अगर अहंकार में डूब जाए, तो उसका परिणाम विपरीत होता है।
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इसीलिए सनातन संस्कृति ने चेतावनी स्वरूप ब्रह्मा जी की पूजा को सीमित किया।
ब्रह्मा जी पूजनीय हैं, लेकिन पूजा के अधिकार से वंचित हैं — यह केवल शाप का विषय नहीं, बल्कि चेतना का संकेत है।
यह प्रसंग हमें सिखाता है कि अहंकार, मिथ्या और अज्ञान, चाहे किसी में भी हो —
दिव्यता के साथ भी, उसका त्याग आवश्यक है।
🔖 "श्रद्धा में प्रश्न हो सकते हैं, पर प्रश्न में श्रद्धा बनी रहनी चाहिए।"
References & Research:
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शिव पुराण – कोटि रूद्र संहिता
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वाल्मीकि रामायण
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श्रीमद्भागवत महापुराण
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गीता प्रेस गोरखपुर की व्याख्यायें
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पुष्कर ब्रह्मा मंदिर इतिहास
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विद्वानों के प्रवचन – स्वामी अवधेशानंद, रामकिंकर उपाध्याय, ओशो आदि